बुधवार, 6 जुलाई 2011

चली आओ तुम मेरी कविता ........

आज फिर तुम लिये
उन सारी मीठी
यादों की मधुर
स्मृति मतवाली
घोल-घोल कर
मलय पवन में,
रजनीगंधा-सी
मन को महकाने
चली आओ तुम
मेरी कविता !
कैसी छायी है
निराशा मनपर
छायी है उदासी
डरा रही मुझको
मेरी ही तनहाई
प्रिय सखी-सी
मुझको बहलाने
दबे-पाँव चली
आओ तुम
मेरी कविता !
जीवन की
रिक्त पाटी पर
इन्द्रधनुषी रंग भरने
जब-तब मेरे घर
चली आओं
तुम मेरी कविता !

13 टिप्‍पणियां:

  1. कैसी छाई है
    निराशा मनपर
    छायी है उदासी
    डरा रही मुझको
    मेरी ही तनहाई
    प्रिय सखी-सी
    मुझको बहलाने
    दबे-पाँव चली
    आओ तुम
    मेरी कविता !


    बहुत सुंदर,
    हर बार की तरह एक ओर अच्छी रचना।

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  2. "जब-तब मेरे घर
    चली आओं
    तुम मेरी कविता!"

    निश्चल कामना - बहुत सुंदर

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  3. "जब-तब मेरे घर
    चली आओं
    तुम मेरी कविता!"


    Bahut Sunder Abhivykti...

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  4. मुझको बहलाने
    दबे-पाँव चली
    आओ तुम
    मेरी कविता !
    सुमन जी, आज तो नये अंदाज में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई

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  5. कविता पढ़ते पढ़ते कविता का स्मरण हो आया. :)

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  6. बहुत सुन्दर रचना...अच्छे शब्द और भाव का अद्भुत संगम...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  7. कविता के कोमल मन में किसी का दिख जाना .. कविता का सार्थक हो जाना ...

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  8. जीवन की
    रिक्त पाटी पर
    इन्द्रधनुषी रंग भरने
    जब-तब मेरे घर
    चली आओं
    तुम मेरी कविता !


    शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी सुन्दर रचना ....

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