भला बूंद की क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके !
 हिंदी साहित्य को चार भागों में विभाजित किया गया है - आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, और आधुनिककाल ! हर काल में साहित्य का अपना अलग महत्व रहा है ! आज का युग वैज्ञानिक युग है ! इस आधुनिक युग में अद्वितीय चिन्तक वैज्ञानिक अभिनव क्रान्ति के प्रस्तोता "आचार्य रजनीश" जिनको सारा विश्व आज "ओशो" के नाम से जानते है ! उनका साहित्य आज के युग की ख़ास पसंद है ! उनका साहित्य ज्यादा से ज्यादा भाषाओँ में अनुवादित होकर सारे विश्व के कोने कोने में पहुँच रहा है ! पूना स्थित उनके आश्रम में हर साल दूर दूर के देशों से साधक आते है और अपने आप को ध्यान और साधना में डूबोते  है ! कठिन से कठिन विषय को भी सरल बना कर सरस शब्दों में समझा कर नीरस विषय को भी मनोरंजक बना कर श्रोताओं को बहला फुसला कर अपने लक्ष्य की ओर प्रोत्साहित करना सचमुच ओशो जैसे शिक्षक को ही साध्य है ! वे अपने विचार किसी पर थोपते नहीं बल्कि उनको अंतर दृष्टी देकर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते है ! बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जेसस, अष्टावक्र, कृष्ण, संत महात्माओं पर उनके अनेक प्रवचन प्रचलित है इतना ही नहीं राजनैतिक सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है !
 मजेदार बात यह है कि उनहोंने लिखा नहीं अपने शिष्यों प्रेमियों द्वारा संकलित किया हुआ है ! शिष्य और सद्गुरु के बीच बोला गया संभाषण है जैसे अभी सुबह सुबह खिले हुए ताज़े फूल !
              ओशो का मतलब ओशोनिक (oceanic) याने कि सागर ! एक ऐसा महासागर जिसके गर्भ में भिन्न भिन्न अमूल्य रत्न भरे पड़े है ! यह महासागर कभी बुद्ध जैसा शांत गंभीर दीखता है तो कभी कभी रौद्र रूप धारण कर समाज में फैले अंधविश्वासों, झूठी परम्पराओं, पाखंडों को तेज रफ़्तार से बहा ले जाता है !
             आज से पच्चीस साल पहले ओशो कि एक पुस्तक मेरे हाथ में पड़ी ! इस पुस्तक को मैंने पढ़ा तो फिर उनको पढ़ती ही गयी जैसे जैसे घर में विरोध बढता गया वैसे वैसे उनसे लगाव भी बढ़ता गया अंततः प्रेम कि जीत हुई ! आज मेरे घर में सभी उनसे प्रेम करते हैं उनके साहित्य को चाव से पढ़ते है ! उस महासागर कि मैं एक छोटी सी बूंद हु भला बूंद कि क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके ! मैंने उस सागर को चखा है आप सब से एक बार चखने के लिए अनुरोध करती हूँ ! फिर आप आप नहीं रहेंगे बदल जायेंगे ! जीवन को देखने का दकियानूसी अंदाज़ भी बदल जाएगा ! उस प्यारे सदगुरु ओशो के चरणों में समर्पित मेरी यह रचना शायद आपको भी पसंद आ जाये !
                                                  " जब तुमसे प्रेम हुआ है "
                                                 तुमको अपना हाल सुनाने
                                                 लिख रही हु पाती
                                                 प्रिय प्राण मेरे    
                                                 यकीन मानो 
                                                 अपना ऐसा हाल हुआ है 
                                                 जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
                                                 जग का अपना दस्तूर पुराना 
                                                 चरित्रहीन कहकर देता ताना 
                                                 बिठाया चाहत पर 
                                                 पहरे पर पहरा 
                                                 नवल है प्रीत प्रणय कि 
                                                 कैसे छुपाऊं 
                                                 ह्रदय खोल कर अपना 
                                                 कहो किसको बताऊँ 
                                                 अपना भी जैसे 
                                                 लगता पराया है
                                                 जबसे मुझको प्रेम हुआ है
                                                 कौन समझाए इन नैनों को 
                                                 बात तुम्हारी करते है 
                                                 पलकों पर निशिदिन 
                                                 स्वप्न तुम्हारे सजाते है 
                                                 जानती हूँ स्वप्नातीत
                                                 है रूप तुम्हारा 
                                                 मन-प्राण मेरा 
                                                 उस रूप पर मरता है 
                                                 जबसे मुझको प्रेम हुआ है
                                                 तुम्हारी याद में,
                                                 तुम तक पहुंचाने को 
                                                 नित नया गीत लिखती हूँ 
                                                 भावों कि पाटी पर प्रियतम
                                                 चित्र तुम्हारा रंगती हूँ 
                                                 किन्तु छंद न सधता 
                                                 अक्षर-अक्षर बिखरा 
                                                 थकी तूलिका बनी 
                                                 आड़ी तिरछी रेखाएं 
                                                 अक्स तुम्हारा नहीं ढला है 
                                                 जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
 
इतनी उत्क्रूष्ट रचना सामने आई है...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंऑशो एक महान साहित्यकार थे! थी!..आपने कविता द्वारा उनकी उपलब्धियों का और उनके गुणों का सुंदर वर्णन किया है...बधाई!
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएं