गुरुवार, 1 अगस्त 2013

"दो और दो पांच"

शिक्षा मन पर 
भार नहीं
अहंकार का
बोझ न हो 
चाहिए थी 
एक ऐसी ही 
पाठशाला मुझको 
खेल-खेल में 
समझाये सबको
मित्रों, 
जीवन भी एक 
खेल ही है 
कोई गोल करता है 
कोई आउट होता है 
ऐसा क्यों होता है ?
वैसा क्यों होता है ?
बेमानी सब तर्क है 
जीवन कोई गणित
है क्या ?
जिसे तर्कों से 
हल किया जा सके 
बिना प्रतिस्पर्धा के 
हार-जीत के बिना 
जीवन एक खेल 
है खिलाडियों का 
जिसमे दो और दो 
चार नहीं 
भी होते है   …

12 टिप्‍पणियां:

  1. गजब शब्दावली-
    शुभकामनायें आदरेया-


    एक एक ग्यारह भले, तिकड़म दो दो पाँच |
    जीवन भर संघर्ष कर, टेढ़े आँगन नाँच | |

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  2. जीवन है एक खेल...कोई पास कोई फेल...
    अब दो और दो पाँच भला किसे पता :-)

    सादर
    अनु

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  3. जिसे तर्कों से
    हल किया जा सके
    बिना प्रतिस्पर्धा के
    हार-जीत के बिना
    जीवन एक खेल
    है खिलाडियों का
    जिसमे दो और दो
    चार नहीं
    दो और दो पांच
    भी होते है …

    जीवन की सही व्याख्या की है आपने.

    रामराम.

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  4. शिक्षा मन पर
    भार नहीं
    अहंकार का
    ब़ोझ न हो
    चाहिए थी
    सही कही... सही माएने में शिक्षित को अहंकार नहीं होना चाहिए....

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. चाहिए थी
    एक ऐसी ही
    पाठशाला मुझको
    खेल-खेल में
    समझाये सबको
    ...
    जीवन की डोर हाथ से कब छुट जाए किसी को नहीं पता मगर हम सब लोग इसे याद नहीं रखना चाहते , हँसते खेलते यह गिने चुने दिन कट जाएँ , तभी शुभ माना जाए !

    मंगल कामनाएं आपको !

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  7. 'दो और दो पांच' हार्दिकता को दिखाता है। जीवन कोई गणित है नहीं, उसमें तो हृदय से सोचना पढता है। इन्हीं भावों का प्रकटिकरण करती सार्थक कविता।

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  8. सुमन,सच बहुत ही बढिया जीवन दर्शन समझाया ।

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  9. और हार जीत की चिंता किए बगैर यह खेल खेलने
    का मजा ही कुछ और होता है
    सादर !

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  10. जीवन के गणित को सीधे से हल नहीं कर सकते ... बहुत सी पेच होते हैं ...
    इसको खेलना ही होता है ...

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