जो गीत
हम गा रहे है
वही तो गा रहे है
ये पेड़,ये पौधे
ये पंछी,ये निर्झर
निष्प्रयोजन
किसी खास
लौकिक प्रयोजन
के लिए नहीं,
सृजन
अपने आप में
आनंद है ख़ुशी है
अपने होने का
प्रकृति के प्रति
धन्यता का
काव्यमय जीवन
प्रकृति का सुन्दर
वरदान है हमारे लिए
यही प्रयोजन भी,
गाओ इसलिए कि
कर्म है गीत
गाओ इसलिए कि
धर्म है गीत
गाओ इसलिए कि
प्रेम है गीत
गाओ इसलिए कि
अहोभाव है गीत
गाओ इसलिए कि
जीवन है गीत …. !!
गाइए,गुनगुनाइए......सुरीले गीत....मीठे गीत...प्यार भरे गीत...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
सादर
अनु
प्रकृति में सब कुछ निष्प्रयोजन ही तो है, अपने कर्म को साक्षी भाव से करते जायें तो वही जीवन का गीत, उत्सव बन जाता है. नितांत सुंदर भाव, सुंदर रचना कर्म.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गाओ इसलिए कि
जवाब देंहटाएंजीवन है गीत ….
बहुत सुंदर रचना,,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
जो भी गीत आज तक गाये
जवाब देंहटाएंवही तो भाषा है पौधों की !
काव्यसृजन है,नहीं और कुछ
कृतज्ञता, प्राकृतिक प्यार की !
यह सुंदर वरदान मिला है, धर्म कर्म से गायें गीत !
आओ गायें साथ बैठकर,प्यार बाँटते , जीवन गीत !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 28/08/2013 को
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः7 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
सुन्दर आह्वान. ज़ाहिर है रोने से अवसाद और बढ़ता है. क्यों ना जीवन एक सकरात्मक सोच से गाते हुए व्यतीत किया जाए.
जवाब देंहटाएंजिंदगी एक गीत है.... बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंbhaut khusurat geet....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंhttp://yunhiikabhi.blogspot.com
जीवन है गीत ... सच कहा है हर बात को सहज ही गा लिया जाए तो आसानी हो जाती है ...
जवाब देंहटाएंगाओ इसलिए की पूरा जीवन ही है गीत
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना...:-)
बहुत बेहतरीन सुमन जी....
जवाब देंहटाएंगाओ इसलिये क्यूं कि जीवन है गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति सुमन जी।
जीवन का गीत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंगाओ इसलिए कि
जवाब देंहटाएंकर्म है गीत
गाओ इसलिए कि
धर्म है गीत
गाओ इसलिए कि
प्रेम है गीत
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
गुलमोहर के गाँव
http://yunhiikabhi.blogspot.com/2013/09/blog-post.html