रविवार, 28 सितंबर 2014

ताउम्र जवां बने रहने का नुस्खा ..

जिंदगी भी ना 
अच्छे-बुरे 
तीखे-कड़वे 
खट्टे-मीठे 
अनुभव लेने की 
आला पाठशाला है  !
यहाँ,
इन अनुभवों के 
नित नवे पाठ 
पढ़िए लेकिन 
रात सोने से 
पहले 
पढ़े पाठ भुला 
दीजिये !
ताउम्र जवां,
खूबसूरत,स्वस्थ, 
तनावरहित बने 
रहने का 
खास नुस्खा 
यह जरूर 
अपनाईये !
महंगे क्रीम 
कॉस्मेटिक सभी 
बेकार है इस 
कीमती नुस्खे के 
सामने  .... :)

शनिवार, 13 सितंबर 2014

भाषा सेतु है ....


भाषा सेतु है 
जो जोड़ देती है 
एक दूसरे से 
व्यक्ति व्यक्ति से 
देश दुनिया से 
प्रेम मार्ग से,

और मौन 
अस्तित्व की भाषा है 
जो जोड़ देती है 
खुद को खुद से 
शरीर,मन,आत्मा से 
प्रकृति परमात्मा से 
ध्यान मार्ग से,

जब भी मिलो 
दूसरे से 
मिलो प्यार से 
जब भी मिलो 
खुद से
ध्यान से  .... !!

रविवार, 10 अगस्त 2014

सिकंदर और कौये की आपबीती …

बात तब की है जब सिकंदर भारत की यात्रा पर आया हुआ था ! सिकंदर ने सुना था कि, भारत के किसी मरुस्थल में ऐसा झरना बहता है जो भी उस झरने का पानी पीता है वह अमर हो जाता है !
उस झरने का पता लगाने के लिए उसने अपने सिपाहियों को चारोंओर दौड़ा दिया  ! आखिर एक दिन उस झरने का पता मिल गया ! सिकंदर की ख़ुशी देखने लायक थी, उसने उस झरने के चारो तरफ यह सोचकर सिपाहियों का पहरा लगा दिया कि, कोई दूसरा उस झरने तक नहीं पहुँच सके इसलिए ! एक छोटी सी गुफा में वो झरना बह रहा था वह अकेला उस झरने के पास पहुंच कर देखा कि, बड़ा ही साफ स्वच्छ स्फटिक मणि जैसा झरना बह रहा है ! सिकंदर ने अब तक ऐसा साफ स्वच्छ पानी कहीं नहीं देखा था ! सामने अमृत और अमर होने की प्यास शायद किसी के मन को भी डावांडोल कर सकती है ! सो उसने भी जल्दी से अंजुली भर ली और उस पानी को पीने जा ही रहा था कि, एक आवाज उसके कानों में गूंजी "सिकंदर रुक जा " ! उसने अपने चारो और देखा और घबराते हुए पूछा ये कौन है इस गुफा में ?? इतने में एक कौये की आवाज उस गुफा में गूंजी    … "यह मै हूँ सिकंदर इधर मेरी तरफ देख, और मेरी आपबीती सुनने के बाद ही तुम इस झरने का पानी पीना " ! पानी से भरी अंजुली छूट गयी हाथ से,कौये की बात सुनकर घबरा गया  ! उसने कहा कौये से कहो क्या कहना चाहते हो ? उस कौये ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि तू जिस प्रकार आदमियों में सिकंदर है मै अपनी बिरादरी में सिकंदर हूँ मैंने भी इस झरने के बारे में खूब सूना था बहुत खोज की थी अंत में इसे खोजकर जी भर कर पानी पी लिया इस बात को कई सादिया बीत गयी लेकिन अब मरना चाहता हूँ ! रोज सुबह से शाम कांव-कांव, कांव-कांव करते थक गया हूँ लेकिन मरता नहीं हूँ कई बार जहर पीया खुद को फांसी पर चढ़ाया, पहाड़ से कूद पड़ा, आग में झुलसना चाहा लेकिन कोई असर नहीं होता कितना ही कोशिश क्यों न करूँ आखिर जिंदा बच जाता हूँ ! अब जिंदगी एक बोझ सी लगने लगी है मै अब मरना चाहता हूँ ! अगर तुम्हारे पास इस अमृत को बेअसर करने को कोई एंटीडोट हो तो मुझे बताओ ? और मेरी इस आपबीती को सुनकर सोच समझकर यह फैसला करो की इस झरने का पानी पीना चाहते हो अथवा नहीं पीना चाहते हो ! अगर जल्दबाजी में पानी पीयोगे तो मेरी तरह पछताओगे फिर कभी नहीं मर पाओगे सोच लेना ! कौये की इस कहानी को सुनकर सिकंदर पल भर सोचा और ज्यों वहां से भागा फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कहीं मन प्रलोभन में पड़कर उस झरने का पानी पी न ले इसलिए !

कहानी किसी और सन्दर्भ में कही गयी होगी लेकिन मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा मनुष्य वाणी में अपनी आपबीती सुनाने वाला यह कौआ और कोई नहीं एक ब्लॉगर की आत्मा है जिसने इस मरुस्थल में ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी पी लिया है और अमर हो गया है ! अब कितना ही पछताये मरने का कोई उपाय नहीं है ! रात दिन कांव-कांव करना अब उसकी नियति बन गयी है ! प्रशंसा के चंद शब्द उसे रोज जीने को मजबूर कर देते है :)  !  भले ही कितना भी थक ले अब मरने का कोई उपाय नहीं है ! यह कहानी चेतावनी स्वरूप है उस सिकंदर के लिए जिसने अभी तक इस ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी नहीं पीया है लेकिन पीना चाहता है ! सावधान ! यहाँ जो भी एक बार आता है इस झरने का पानी पीता है अमर हो जाता है ! फिर कितना भी सर पटक ले, घायल हो ले यहाँ अब मरने कोई उपाय नहीं है सोच ले ! 
कांव-कांव-कांव कांव :)

बुधवार, 6 अगस्त 2014

सृजन की ये कैसी मीठी,मधुर वेदना …

क्या चाह है वो 
नभ बाहों में 
भर लेने की,
या की 
खोज है वो 
खुद को 
पा लेने की,
या फिर 
तृष्णा है वो 
बूंद-बूंद कर 
पूरा सागर ही 
पी लेने की,
आहा !
सृजन की ये 
कैसी मीठी, मधुर 
वेदना है जो 
जन्म देती है 
हर बार एक 
नयी रचना को    … !!

सोमवार, 21 जुलाई 2014

बदलाव प्रकृति का नियम है …

जीवन में हर चीज बदल रही है !
नाजुक चीजे कुछ ज्यादा ही,
प्रेम उतनाही नाजुक है 
जितना की गुलाब का फूल !
लेकिन गुलाब जितना नाजुक 
उतना ही आँधी,वर्षा, तेज धूप 
के विरुद्ध शक्तिशाली,संघर्षरत !
जो सुबह-सुबह सूरज की 
सुनहरी किरणों के साथ 
खिलता खिलखिलाता है !
हवा की सरसराती तालपर 
झूमता,डोलता, नाचता  है !
और साँझ होते ही मुरझाने 
लगता है    … 
बदलाव प्रकृति का नियम है !
चीजों को बदलकर नित नविन 
शक्ल में ढाल देती है प्रकृति !
इस प्राकृतिक प्रक्रिया से
प्रेम भी अछूता नहीं होता !
परिस्थितियों की आँधियों 
और वक्त की तेज धूप से 
वो भी मुरझाने लगता है 
बिलकुल इसी गुलाब की 
तरह   … 


www.youtube.com/watch?v=4nnJDMmjmxU

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

शत-शत नमन करे …

ओशो ने कभी 
न गीत लिखे 
न लिखी कभी 
कोई कविता 
लेकिन उनके 
एक-एक प्रवचन 
किसी गीत किसी 
कविता से कम नहीं 
वे स्वयं में गीत है 
कविता है 
अगर उसका एक 
छंद भी 
ढंग से हमारे दिल को 
छू ले तो परिवर्तन 
निश्चित है    …। 

   ****

जीवन की रिक्त 
    पाटी पर 
जिसने पूनम 
    बन कर 
इंद्रधनुषी शाश्वत 
     रंग भरे 
आओ,आज उस  
   सद्गुरु के 
    चरणों में 
शत-शत नमन 
      करे     .... !!

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

जाने का उत्सव भी मनायें …

यदि,
जन्मदिन एक उत्सव है तो 
मृत्यु दिन का मातम क्यों ? 
उत्सव क्यों नहीं हम मनाते 
सोच कर देखा जाय तो 
न हम जन्म लेते है 
न हम कभी मरते है !
दरअसल हम एक ग्रह से 
दूसरे ग्रह पर केवल 
विजिट वीजा पर 
आते-जाते रहते है !
और इस आने जाने के 
बीच में हम हमारे 
नाम,धाम,जाती,धर्म 
उससे जुड़े सुख-दुःख 
उससे जुडी समस्याओं 
में फंस कर 
शब्द,विचार,शास्त्र,
सिद्धांतो के चक्कर में 
पड कर  
यह भूल ही जाते है 
कि तिथि के अनुसार 
हम पृथ्वी ग्रह पर
विजिट करने आये थे 
तो एक दिन जाना 
भी पड़ेगा  !
यदि आने का उत्सव 
मनाया है तो, क्यों न 
जाने का उत्सव भी 
हंसी ख़ुशी से मनायें 
क्योंकि,
और भी विजिटर्स 
लाईन में खड़े है यहाँ 
आने के लिये   .... !!