गुरुवार, 3 जुलाई 2014

जाने का उत्सव भी मनायें …

यदि,
जन्मदिन एक उत्सव है तो 
मृत्यु दिन का मातम क्यों ? 
उत्सव क्यों नहीं हम मनाते 
सोच कर देखा जाय तो 
न हम जन्म लेते है 
न हम कभी मरते है !
दरअसल हम एक ग्रह से 
दूसरे ग्रह पर केवल 
विजिट वीजा पर 
आते-जाते रहते है !
और इस आने जाने के 
बीच में हम हमारे 
नाम,धाम,जाती,धर्म 
उससे जुड़े सुख-दुःख 
उससे जुडी समस्याओं 
में फंस कर 
शब्द,विचार,शास्त्र,
सिद्धांतो के चक्कर में 
पड कर  
यह भूल ही जाते है 
कि तिथि के अनुसार 
हम पृथ्वी ग्रह पर
विजिट करने आये थे 
तो एक दिन जाना 
भी पड़ेगा  !
यदि आने का उत्सव 
मनाया है तो, क्यों न 
जाने का उत्सव भी 
हंसी ख़ुशी से मनायें 
क्योंकि,
और भी विजिटर्स 
लाईन में खड़े है यहाँ 
आने के लिये   .... !!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही बात... न जीना न मरना बस एक यात्रा और अगली यात्रा पर पलायन.. आचार्य जी की बात कहूँ तो बचपन जीवन का सबसे मधुर काल होता है... ऐसे में जीवन यात्रा में जिस प्रकार सभी गुणों का उत्थान होता है, बचपन के आनन्द का भी चरमोत्कर्ष होना चाहिये, एक परमानन्द के रूप में... लेकिन कहाँ... हर कोई उदासी और दु:ख में पलायन करता है... जबकि विदा का उत्सव तो शानदार होना चाहिए.

    जब भी देखता हूँ "आई लीव यू माई ड्रीम" आँखें भीगती नहीं, बस यही कामना होती है जी में कि जब विदा होना तो ऐसे ही होना कि लोग उत्सव करें और हम यह घोषणा कर सकें कि

    अपने जीने की अदा भी है निराली सबसे,
    अपने मरने का भी अन्दाज़ निराला होगा!

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  2. आनंद यही है कि आखिरी दिन भी और दिनों जैसा हो और हँसते हुए जाएँ ! मंगलकामनाएं ……

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  3. यदि आने का उत्सव
    मनाया है तो, क्यों न
    जाने का उत्सव भी
    हंसी ख़ुशी से मनायें
    mushkil hai .aane kee khushi hoti hai aur jaane ka gam ise nahi palat sakte .

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  4. बहुत ही सशक्त और सार्थक चिंतन.

    रामराम.

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  5. विचारणीय है ...स्वागतेय तो ये भी हो ....
    बंधनों से मुक्त होना तो अधिक ख़ुशी दे....

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-07-2014) को "मैं भी जागा, तुम भी जागो" {चर्चामंच - 1666} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. कितना सहज कह दिया जीवन मृत्यु के इस खेल को ... पर सोचो तो सच ही कहा है आपने .. अपना अपना विजिट वीसा ले के आते हैं सभी इस जहां में ...
    लाजवाब ...

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  8. करलिखना बहुत सरल है लेकिन वास्तविकता से जब सामना होता है तब पता चलता है की उत्सव मनाये या छाती पीट - पीट कर रोये। आपकी कविता पढ़ एक आदमी भी इस पर अमल कर सका तो समझ लीजियेगा की आपका लिखा सार्थक हो गया।

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