भीड़ के साथ
मिलकर व्यक्ति
भीड़ ही बन जाता है
और भीड़ का कोई
व्यक्तित्व नहीं होता
न ही कोई
उत्तरदायित्व होता है
सामूहिक हत्याओं में
विध्वंस में ....!
***
मन मंथन
आत्म चिंतन से
बेहतर उपाय
अब हमने
सोच लिया है
सामूहिक
विरोध स्वरूप
विरोध स्वरूप
कैंडल मार्च
करना ....!
सच है परिवर्तन तो सोच में लाना है.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकाएं आदरेया-
जवाब देंहटाएंभीड में इंसान एक हिस्सा भर होता है उसका अपना सोच व वजूद शायद खत्म हो जाता है. बहुत सुंदर क्षणिकाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मन मंथन
जवाब देंहटाएंआत्म चिंतन से
बेहतर उपाय bahut sundar.....
बहुत सुन्दर...सारगर्भित ... क्षणिकाएँ .....सुमनजी
जवाब देंहटाएंदेश में भीड्चाल का रिवाज़ है ...इसपर चिंतन आवश्यक है !
जवाब देंहटाएंbahut acchi rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक ,चिंतन योग्य.......
जवाब देंहटाएंसुमन जी
बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंसोच बदलनी ही होगी. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं