एक तिनका अगर बहती नदी से संघर्ष करेगा तो क्या होगा ? जाहिर सी बात है तिनके का संघर्ष व्यर्थ जायेगा, अपनी उर्जा को गंवा देगा ! तिनका अगर नदी के प्रवाह के साथ बहने को राजी होगा तो, जरुर एक दिन उसके साथ समुद्र तक पहुँच जायेगा ! या फिर नदी किसी न किसी किनारे अवश्य उस तिनके को पहुंचा ही देगी ! मित्रो, जीवन इतना भी गंभीर नहीं है जैसा की, अक्सर हम उसे समझते है ! लेकिन जीवन के साथ भी कुछ ऐसा ही नियम है ! लड़ना नहीं, हमें नदी की तरह बहना है ! जीवन असीम है और हम है सिमित, कैसे लड़ पायेंगे ? दूसरों से हम जितनी आपेक्षाएं कम रखेंगे उतने ही आनंदित रहेंगे ! क्यों की आनंद हमारा स्वभाव है ! उस आनंद को दूसरों के साथ बांटिये, ध्यान हो,धन हो,प्रेम हो स्नेह हो जो भी आपके पास है ! आनंद बांटने से कई गुना बढ़ता है ! जो तालाब की तरह अपने में बंद हो जाते है, जीवन के वास्तवीक आनंद से चुक जाते है ! जीवन का नियम है केवल देना ! अगर प्रत्येक व्यक्ति ना देने पर आबद्ध हो जाए, तो फिर जीवन समाप्त हो जाता है !
पता है एक दिन सतत बहती नदी से तालाब ने क्या कहा ? तालाब ने नदी से कहा, तू व्यर्थ ही अपनी जल-संपत्ति को समुद्र में फेंके जा रही है एक दिन निश्चित ही तू चुक जाएगी ! समाप्त हो जाएगी ! अपने जल को सम्भाल उसे रोक, संगृहीत कर ! तालाब ने एक व्यावहारिक आदमी की तरह सलाह दी ! लेकिन नदी थी बड़ी वेदांती ! उसने कहा, तुम भूल कर रहे हो, जीवन का सूत्र तुम्हे विस्मरण हो गया है, देने में बड़ा आनंद है, ऐसा आनंद जो कि रोकने से नहीं है ! जब कभी मैंने अपने जल को रोका, बहुत दुखी हुई हूँ ! और जब मैंने दिया है, तब सुख खूब बहा है ! और यह मत सोचना कि मै सागर को दे रही हूँ, मै अपने सुख के कारण दे रही हूँ .......स्वांत: सुखाय ! देना ही मैंने जीवन में जाना है ! तुम मृत हो, और अगर युगों तक बने रहे तो उससे क्या ? तुम्हारा सडा हुआ पानी किसी काम न आएगा ! देखना वह भी एक दिन सुख जायेगा ! दोनों में इसी बात पर मन मुटाव हो गया ! नदी पूर्ववत बहती रही और तालाब सुखकर गरमी से कीचड़ बन कर तलैया में तब्दील हो गया ! जब गरमी अपने पुरे शिखर पर थी तो, तालाब समाप्त हो चूका था ! मरते तालाब से नदी ने कहा, देखा तुमने ? मै जितना देती हूँ तो मेरे स्त्रोत मुझे उतनाही देते है ! तुम देते नहीं तो तुम्हारे स्त्रोत भी तुम्हे नहीं देते है ! देना जीवन का नियम है नदी ने कहा !
बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंNEW POST.... बोतल का दूध...
देना स्थूल के प्रति अनासक्ति और सूक्ष्म के प्रति प्रेम का प्रतीक है। देने में यह भी ज़रूरी है कि दाताभाव न रहे।
जवाब देंहटाएंशिक्षाप्रद लेख....बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानप्रद और सार्थक आलेख...
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट के माध्यम से हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है ,अर्थपूर्ण आलेख
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख । बहते रहना ही जीवन है और देने में असीम सुख । अपेक्षाएँ कुंठा को जन्म देती हैं इसीसे इन्हे ना पालना ही अच्छा ।
जवाब देंहटाएंसुमनजी, मैं महीने के लंबे प्रवास पर थी और उसके बाद घर में मेहमान थे । आपका कुशल पूछना अच्छा लगा । धन्यवाद ।
देना जीवन का नियम है नदी ने कहा ! बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंतुम देते नहीं तो तुम्हारे स्त्रोत भी तुम्हे नहीं देते है !
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश देती प्रस्तुति.....
सुंदर सार्थक सटीक अभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
सच है!
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानप्रद,शिक्षाप्रद लेख....बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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