ख्याल कभी मेरे ...
हो मौन कभी मुखर
चेतना से इंधन
डलवा कर ...
चमचमाती, कीमती
मोटर, गाड़ियों की तरह
राज पथ पर (हाई वे)
दौड़ते है, कभी खुद
पगडंडी बन किसी गाँव
क़स्बे में पहुँच जाते !
कभी फूल- से नाजुक
तितलियों से चंचल
फूल-फूल पर मंडरा कर
पंख अपने रंग लेते !
कभी सूरज के प्रखर
ताप से पिघल कर
बाष्प बन हृदयाकाश में
भाव की बदली बन
छा जाते, बरस जाते
मन के आंगन में,
अनायास ही
गीत स्वयं बन जाते
ख्याल मेरे कभी ........!!
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
बहुत सुंदर ॥
जवाब देंहटाएंकभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है,
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ,.....
ख्यालों की उड़ान कहाँ से ले जायेगी कुछ पता नह चलता ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.
खूबसूरत पंक्तियों के साथ लिखी गई सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुित है आपकी.
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार कीिजये ...
ख्याल वह पगडंडी है जिसपर चलकर हम अपनी मंज़िल तलाशते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ...सब कुछ समाये ख्याल....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंख़्याल की यही विडम्बना है। वह या तो भूत में रहता है या भविष्य में।
जवाब देंहटाएंकित्ता सुन्दर गीत..बधाइयाँ.
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'पाखी की दुनिया' में देखिएगा मिल्की टूथ की बातें..
bahut sundar
जवाब देंहटाएंखयालों की दुनिया भी कुछ अजीब सी होती है...पर बहुत सुन्दर होती है!
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति अच्छा लगी । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपकी उपस्थिति पार्थनीय है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह!! अति सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंख़यालों का खूबसूरत चित्रण ...
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