गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

जागो सखी, जागो बसंत आ गया .........



अवनी के कण-कण में.
अपरमित उल्लास है छाया
 जागो, जागो .... 
जागो सखी, जागो बसंत आ गया .......
हरे-भरे हुये सब बाग़, बगीचे 
खिले रंगबिरंगी फूल फबीले
रुनझुन-रुनझुन कर मंडराते 
उसपर भौरे  छैल छबीले
पीली सरसों फूली हुई है 
बाली गेहूं की दूध भरी है 
चित्रलेखा-सी सजी वसुंधरा 
अंग-अंग में  नवयौवन भर गया 
जागो सखी, जागो बसंत आ गया ....

वन में सुरंग पलाशों ने जैसे 
चारो ओर सिंदूरी पताके पहराए है 
कोयल की कुहुक भरे फाग गीतों ने, 
सबको रक्खा जगाये है 
गाने वाली चिड़िया आई
 जाने कौन से प्रदेशों से, गीत गाने
 मानवता का मन्त्र सिखाने 
मिलजुल कर सदा साथ चलना 
जागो सखी, जागो बसंत आ गया .........!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना,लाजबाब प्रस्तुतीकरण..सुमन जी...बहुत खूब

    my new post ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

    जवाब देंहटाएं
  2. इस रचना में बसंत अपने हर रंग में चहक रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत मनभावन प्रस्तुति...
    मन भी वासंती हो गया...

    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  4. बसंत एक उल्लास है। उसी में जीवन का उत्स है। तभी उसके बारे में इतना कुछ लिखा जाता रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. बसंत के सौंदर्य का बहुत सुन्दर वर्णन!...बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  6. लाजवाब ,आनंद से भारती है ये रचना
    शब्दों का प्रयोग बहुत ही सुन्दर है
    बधाई ..
    kalamdaan.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  7. बसंत के स्वागत में सुंदर रचना, बधाई......

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर कविता ! गांवो की बसंत और माघ की हरियानी मन - मष्तिक पर छ गयी !बधाई जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ख़ूबसूरत एवं लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर वासंती कविता । बचपन में एक कविता पढी थी । वह याद आ गई ।
    वसंत की बयार से ये दिग-दिगन्त छा गया
    दुखों का अंत आ गया, कि लो वसंत आ गया ।

    जवाब देंहटाएं