शनिवार, 10 दिसंबर 2011

दुनिया एक चित्रशाला है !

सुबह बगीचे में कई रंगों के गुलाब खिल गए ! और साँझ होते ही सब मुरझा गए ! जमीन पर सारी पंखुड़ियाँ झर गई,यह देखकर रचनाकार का मन उदास हो गया ! प्रकृति का सौन्दर्य क्षणभंगुर क्यों है ? काश सब रंग सारा सौन्दर्य शाश्वत होता ? उसने आकाश की ओर देखकर कहा ......हे इश्वर तुमने सौन्दर्य को शाश्वत क्यों नहीं बनाया ? आकाशवाणी हुई, जवाब मिला कि, दुनिया एक चित्रशाला है ! यहाँ रोज रंग बदलते है ! बदलने ही चाहिए ! इसकी रचना ही मैंने मिटने वाले रंगों से बनाई है ! अगर रंग ऐसे ही ठहर गए तो, इन्हें कौन देखना पसंद करेगा ? सब उदास हो जायेंगे ! सारा अस्तित्व ही बेरंग हो जायेगा ! लोग वही-वही सब देखकर बोर हो जायेंगे ! इसलिए हर रोज मै चीजे बदलता हूँ!
रचनाकार ने सोचा इश्वर की बात कितनी सच है ! सच में रोज रंग बदलने चाहिए ....!!

                                                       
                                                      वाह 
                                                      क्या रंग भरा है 
                                                      तुमने इस दुनिया में,
                                                      या फिर मेरे 
                                                      इन नयनों में !

10 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  3. @सच में रोज रंग बदलने चाहिए ....!!

    हमारा क्या होगा ...??
    खतरनाक सोंच ....

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  4. सच में रोज रंग बदलने लगे तो कितना अच्छा होता...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद!!!!!

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  6. सच में दुनिया एक रंगशाला ही है।

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  7. यह संकेत है कि सृष्टि चलायमान है। जो अतीत में जिएगा,वह शोकमय रहेगा। जो वर्तमान में जिएगा,भविष्य का आनंद उसी के हिस्से आएगा।

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