रविवार, 7 जुलाई 2013

गुलमोहर ...

मेरे कमरे की खिड़की के बाहर दिखाई देता है गुलमोहर का पेड़  ! प्रति वर्ष अप्रैल से लेकर मई महीने में अपने पुरे बहार पर होता है  !गुलमोहर की लंबी -लंबी शाखायें  आकाश में फैली हुई , लाल फूलों से भरी हरी-भरी टहनियों का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है  ! साथ में गुलमोहर पर रहने इन दिनों आ जाती है कोयल, भांति-भांति की चिड़ियाँ  ! जब भी गुलमोहर हवाओं की सरसराती ताल पर झूम-झूमकर नाचता है तब मुझे ऐसा लगता है जैसे गुलमोहर इस अस्तित्व में अपने होने का उत्सव मना रहा है  ! गुलमोहर ही नहीं उसके लाल फूल भी हवाओं के साथ नाचते हुए  धरती पर झरते है ,तब निचे धरती पर लगता है किसी ने लाल फूलों का गालिचा बिछा दिया है ! कभी-कभी तो इन फूलों की पंखुड़ियाँ  मेरे कमरे के भीतर तक आ  जाती  है  ! इन पंखुड़ियों को हाथ में लेकर सोचती हूँ गुलमोहर ने मेरे लिए भेंट  स्वरूप भेजे है  ! सच में किसी ने इसका नाम भी सोच समझ कर ही रखा होगा  गुल का मतलब फूल और मोहर का मतलब मोर का पिसारा , है ना प्यारा नाम गुलमोहर  का ...!सुबह शाम चिड़ियों की चहचहा हट ,कोयल की कुहुक से गुलमोहर के आस-पास खुशहाली ही खुशहाली दिखाई देती है  ! पेड़ का स्वास्थ्य उसकी सुंदरता  उसके अदृश्य जड़ों पर निर्भर करती है  !आजकल  मेरे कमरे की खिड़की से गुलमोहर  को घंटों  निहारना  मेरी दिनचर्या -सी बन गई है  ! 
एक आत्मीय संबंध सा बन गया है उसके साथ  !

दिन के अवकाश के पश्चात रात की गहरी कालिमा ने सारे संसार को आच्छादित कर दिया है  ! गहरी नींद की आगोश में  सो रही है सारी दुनिया ,लेकिन मै अकेली जाग रही हूँ ..नींद आँखों से कोसो दूर ...पता नहीं मन आज बेचैन सा हो गया है ! खिड़की पर हाथ टिकाये दूर-दूर तक पसरे सन्नाटे को देख रही हूँ  ! अचानक कोई वाहन  गुजर गया है शायद, गुलमोहर एक बार उसकी  रौशनी  में  नहा गया था ...फिर से निशब्द  सब कुछ  ! अंधकार में पेड़ों की छायायें रेंगती  हुई -सी  अदभूत अनुभव  हुआ ...खिड़की  से आती हवाओं के शीतल झोंकों ने मन की बेचैनी  भी कुछ हद तक कम हुई थी  ! सोचने लगी  थी कि , हम मनुष्य रूपी पेड़ों की  भी जड़े होती है  जीवन की मिट्टी में फैली हुई  ! हमारे प्राण यही से पोषण ग्रहण करते है और फलते फूलते है  ! बाहर का दिखाई देने वाला सारा विस्तार इन जड़ों की वजह से है  ! मुझे ऐसा क्यों लग रहा है  कि ,कोई शैतानी ताकत है जो हमारी इन जड़ों को काट रही है  और हमें पता तक नहीं चल रहा है  और हम अपनी ही जड़ों  से दूर होते जा रहे है ...दूर बहुत दूर ...!

19 टिप्‍पणियां:

  1. गुलमोहर का सौंदर्य एक अलग ही जादू बिखेरता है जो बरबस ही मन को बांध लेता है.

    स्व. दुष्यंत जी ने लिखा है:-

    "जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
    मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए."

    बहुत ही सुंदर विचार.

    रामराम.

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  2. मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि ,कोई शैतानी ताकत है जो हमारी इन जड़ों को काट रही है और हमें पता तक नहीं चल रहा है और हम अपनी ही जड़ों से दूर होते जा रहे है ...दूर बहुत दूर ...!

    गहरे आत्मबोध में उतरने के पश्चात ऐसे ही विचारों का विस्तार होता जाता है जो अंतत: निराशा से होता हुआ अपने लक्ष्य को प्राप्त होता है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. बहुत प्यारी पोस्ट है दी....दिल के करीब लगी....
    कभी हमने भी लिखा था कि द्वार पर झूलती गुलमोहर की डाली,मानो नववधु करती हो गृहप्रवेश...
    बहुत सुन्दर!!!

    सादर
    अनु

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  4. बहुत सुंदर गुलमोहरी आलेख ,ये फूल कुछ ख़ास ही है ....जब गरमी में ये फूल खिलते है
    तो गर्म लपटों से भी शीतलता की अनुभूति होती है ......बसंत तो इन फूलों के साथ ही
    विदा लेता है फिर वापस आने के लिए .....
    साभार.....

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  5. गुलमोहर के सौंदर्य की लाजबाब प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  6. खुशबू फैलाती बहुत सुंदर पोस्ट
    क्या कहने

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  7. गुलमुहर पर बहुत सुन्दर आलेख बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post केदारनाथ में प्रलय (भाग १)

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  8. हमारी भी बिल्डिंग के नीचे लगे है ३ गुल्मिहर के पेड़ जो अभी भी खिल रहे हैं पूरी ताजगी लिए ... लाजवाब लिखा है आपने ...

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  9. आपकी यह रचना कल मंगलवार (09-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  10. मनुष्य अपनी जड़ों से दूर तो जा ही रहा है और उसमे अब पहले जैसे गुलमोहर से फूल भी नहीं निकलते
    भौतिकवादी मानसिकता से जकड़ा है आज का मनुष्य
    सटीक लेखन
    सादर!

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  11. इसी गुलमोहर की तरह अपनी जडें भी गहरी रखनी चाहिए नहीं तभी जिंदगी में उल्लास है. लेकिन विकस्वर इंसान अपनी जडें ही खो रहा है सबसे पहले. फिर कहाँ से हो गुलमोहरी असर. बहुत सुन्दर लेख.

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  12. मन को सकून पहुंचती..... गुलमोहर.... सुंदर पोस्ट दी..... आभार !!

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  13. बेहद खूबसूरत लेख है ..
    लगता है आपका गुलमोहर, हमारे घर के दरवाजे पर लगा है, लगभग ३० वर्ष का साथ है !
    इन मूक जीवों से अपने आपको बहुत कम लोग जोड़ पाते हैं और जो जोड़ने में समर्थ होते हैं वे ही शायद परमहंस कहलाते हैं !
    प्यार की परिभाषा अब इंसान नहीं जानते यह मूक अधिक आसानी से समझा सकते हैं !
    बधाई आपको !!

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  14. बहुत सुंदर, आभार

    यहाँ भी पधारे ,
    रिश्तों का खोखलापन
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

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  15. गुलमोहर के जैसा लाल लाल फूलों से सजा लेख । बहुत ही सुंदर लगा सुमन जी ।

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  16. मनोहर निबंध। वैसे पेड़ का वर्तमान नाम गोल्डमोहर का अपभ्रंश माना जाता है ...

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