यह कहानी है तो पुरानी पर आज भी मुझे प्रासंगिक लगती है ! हुआ यूँ की एक छोटे से गांव में एक विचारक रहता था ! एक दिन सुबह-सुबह वह उस गांव के तेली के पास तेल खरीदने गया था ! तेली अपने दुकान पर बैठा तेल बेच रहा था और दुकान के पीछे ही तेली का बैल कोल्हू को चला रहा था !विचारक ने तेली को तेल देने के लिए कहा , तभी उसने देखा कि तेली का बैल कोल्हू चला रहा है लेकिन उसे चलाने वाला कोई नहीं था बैल खुद अपने आप चल रहा था ! विचारक को बड़ा आश्चर्य हुआ , उसने तेली से पूछा कि , "कमाल है बिना आदमी के चलाये कैसे यह बैल अपने आप चल रहा है " ऐसा आश्चर्य मै पहली बार देख रहा हूँ ! ऐसी कौनसी तरकीब अपनाई है आपने ? बड़ा स्वामि भक्त लगता है आपका यह बैल ! विचारक की बात सुन कर तेली जोर से हंसते हुए कहा ..."यह बैल अपने आप स्वेच्छा से नहीं चल रहा है इसमे मेरी बढ़िया तरकीब काम कर रही है देखते नहीं हो, मैंने इसके आँखों पर पट्टी बांध रखी है !इसलिए बैल को दिखाई नहीं देता की पीछे कोई है भी या नहीं है ! वो यह मानकर चल रहा है कि पीछे कोई है उसे हांकने वाला "!
विचारक ने तेली की बात सुनकर कहा ..."लेकिन बैल कभी रूककर भी तो जाँच कर सकता है कि कोई पीछे है या नहीं है , कभी जाँच नहीं करता क्या ? बड़ा विश्वासु और श्रद्धावान लगता है यह आपका बैल "! विचारक की बात सुनकर तेली ने कहा ....बात श्रद्धा और विश्वास की नहीं है , देखते नहीं हो , मैंने उसके गले में घंटी बाँध रखी है इसलिए वह चलता रहता है घंटी बजते रहती है और मुझे घंटी की आवाज से पता चलता है कि बैल चल रहा है ! जब भी बैल थककर रुकता है तो घंटी की आवाज नहीं आती तब जाकर मै तुरंत हांक देता हूँ बैल फिर से चलता रहता है और बैल को भी हमेशा यह ख्याल बना रहता है कि पीछे कोई है हांकने वाला , और घंटी की आवाज से मुझे पता चलता है कि बैल चल रहा है !
लेकिन तेली की तर्कों को हमारे विचारक कहाँ मानने वाले थे , सो विचारक ने फिर से यह प्रश्न किया कि , "मान लीजिये कभी बैल एक जगह खड़ा रहकर भी तो अपनी गर्दन हिला सकता है और घंटी बजती रहती है इस प्रकार आपको धोखा भी तो दे सकता है ,तब क्या करते हो आप " !
विचारक के तर्कपूर्ण बाते सुनकर तेली को बड़ा गुस्सा आ गया और गुस्से से कहा ....."ओ महाशय जल्द से जल्द यहाँ से तशरीफ ले जाइये ....किसी दुसरे दुकान पर जाकर तेल खरीद लीजिये अगर मेरे बैल ने आपकी बाते सुन ली तो गजब हो जायेगा मेरी दुकान बंद हो जाएगी ...इस बैल की वजह से ही तो मेरी रोजी-रोटी
चलती है !
मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा कि ,सीधे साधे लोगों की आँखों पर पट्टी बांधकर गले में अंधविश्वास की घंटी बांधकर उनका शोषण करना कितना आसान काम है न , आजकल तो यही हो रहा है ...इसी कारण तो उनकी दुकाने चल रही है , यदि कोई उस विचारक की तरह प्रश्न करे तो नास्तिक कहकर उसे भगा दिया जाता है आखिर उनके दुकानों का
सवाल जो है .....!!
बहुत बहुत आभार कविवर !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कथा है दी....
जवाब देंहटाएंबेहद प्रासंगिक.....और रोचक भी.
सादर
अनु
वाह ...
जवाब देंहटाएंमस्त कहानी है तेली की
दुनिया को सिखलाती है,
गले में घंटी आँख में पट्टी
खूब दूकान चलाती है !
तेली से चालाक जुगाडू कदम कदम पर मिलते है !
लल्लू बैल बेचारे अक्सर, कोल्हू चलाते मिलते हैं !
बहुत बढ़िया कहानी .... सब अपनी दुकान चलाने के तरीके निकाल लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंआज के संदर्भ में जनता कोल्हू की बैल है और तेली हमारे नेता हैं, अन्ना जैसे विचारक को फ़्लाप कर दिया जाता है. बहुत ही सुंदर बोध कथा की तरह है आपका यह आलेख, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद कहानी... आभार..
जवाब देंहटाएंविचारक की दोनों तरफ दुर्गति है। मज़हबी विचारधाराएँ धर्मविरोधी कहकर भगा देती हैं और धर्महंता विचारधाराएँ गोली से उड़ा देती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और प्रासंगिक कथा,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अभी भी आशा है,
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंधर्म का उद्देश्य तो अच्छा है लेकिन जिस तरह उसको बांचने वाले उसकी गलत व्याख्या करते हैं वही इतनी साड़ी जटिलताएं लाता है. उदहारण के तौर पर पुराण ही है.
जवाब देंहटाएंधर्म का उद्देश्य तो अच्छा है लेकिन जिस तरह उसको बांचने वाले उसकी गलत व्याख्या करते हैं वही इतनी सारी जटिलताएं लाता है. उदहारण के तौर पर पुराण ही है.
जवाब देंहटाएंवाकई प्रासंगिक कथा ....
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जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती हुई
सच है अगर अंधविश्वास ना हो तो कितनों का रोजगार चला जाए
सादर आभार !
सुंदर प्रस्तुति ।।।
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं सटीक प्रसंग
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सीख देती है आपकी यह कथा आदरणीया ....
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