हमारे शास्त्रों में गुरु का विशेष महत्व बताया गया है ! माता-पिता, शिक्षक, मित्र यह सब हमें पूज्यनीय और गुरु समान है इनके सहाय्यता के बिना हम आज कुछ भी नहीं होते ! हमारे व्यक्तित्व निर्माण में इन सबकी महत्वपूर्ण भूमिका है ! व्यक्तित्व निर्माण में यह सब लौकिक गुरु नीव की तरह है तो अध्यात्मिक सद्गुरु शिखर के समान है !
यदि दृष्टिदोष हुआ हो तो हम क्या करते है ? जाहिर सी बात है हम किसी अच्छे नेत्र चिकित्सक के पास जाते है ! यदि दृष्टिकोण ही बदलना हो, तब तो कोई मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, तत्व चिंतक सद्गुरु ही काम आते है ! सद्गुरु ध्यान रूपी शल्य चिकित्सा पद्धति से हमारे दृष्टिकोण को न सिर्फ तराशता, निखारता है बल्कि जीवन को देखने का अंदाज ही बदल देता है ! आप के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि, हमारे दृष्टिकोण को बदलने की क्या जरुरत है अच्छी खासी तो है ! नहीं, अच्छी खासी होती तो हम यूँ अधूरे-अधूरे न जीते न जीवन में निराश,दुखी, तनाव में होते !
यदि दृष्टिदोष हुआ हो तो हम क्या करते है ? जाहिर सी बात है हम किसी अच्छे नेत्र चिकित्सक के पास जाते है ! यदि दृष्टिकोण ही बदलना हो, तब तो कोई मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, तत्व चिंतक सद्गुरु ही काम आते है ! सद्गुरु ध्यान रूपी शल्य चिकित्सा पद्धति से हमारे दृष्टिकोण को न सिर्फ तराशता, निखारता है बल्कि जीवन को देखने का अंदाज ही बदल देता है ! आप के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि, हमारे दृष्टिकोण को बदलने की क्या जरुरत है अच्छी खासी तो है ! नहीं, अच्छी खासी होती तो हम यूँ अधूरे-अधूरे न जीते न जीवन में निराश,दुखी, तनाव में होते !
सद्गुरु उस शांत-शीतल सरिता के समान है जिसके किनारे बैठ कर, जिसे सत्संग भी कहा जाता है ... फिर से हम अपनी प्राकृतिक निर्विकार, निश्छल, चेतना को पाया जा सकता है स्वस्थ हुआ जा सकता है जिसके बिना यह जीवन, यह सब उपलब्धिया अधूरी सी है! आईये, आज के दिन इस गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम भी हमारे ह्रदय रूपी ज्योति कलशों में सद्गुरु की अनुकंपा भर लेते है और पोर-पोर नहा लेते है …!
जीवन आनंद का ही दूसरा नाम है परंतु हम प्रकृति के जादू में उलझ कर जीने का असली आनंद ही खो देते हैं. गुरू हमे हमारे वास्तविक स्वरूप की तरफ़ ले जाते हैं.
जवाब देंहटाएंएक बार वास्तविक स्वरूप की झलक देखने के बाद गाहे बगाहे हमें उस की लत लग जाती है. इसीलिये कबीर ने गुरू को सबसे बडा कलाल कहा है जो एक बार पिला देता है तो उस शराब का नशा उतरता ही नही है.
गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
शुभ-कामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीया....
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है।
कौन धूप में,जल को लाकर
जवाब देंहटाएंसूखे होंठो, तृप्त कराये ?
प्यासे को आचमन कराने
गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?
नंगे पैरों,गुरु-दर्शन को,आये थे, मन में ले प्रीत !
सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !
सुन्दर अभिव्यन्ति ... गुरु की महिमा और मान जितना हो कम है ...
जवाब देंहटाएंगुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामना......
जवाब देंहटाएंगुरु ही हैं जो हमें हमारे सही रूप से परिचित करते हैं
आजके दिन हम गुरु पूर्णिमा के रूप में मना कर उनका अभिनन्दन करते हैं...
जीवन का सही अर्थ समझते हैं गुरु..... सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंसमझाते
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