मित्रो, स्पेन के महान चित्रकार "पाब्लो पिकासो" के बारे में आप सब जानते ही होंगे ! अनावश्यक विस्तार में न जाते हुए उनके बारे एक बात कहना चाहती हूँ ...एक दिन पिकासो चित्र बना रहे थे इतने में एक ग्राहक आया उनकी एक पेंटिंग वह ग्राहक खरीदना चाहता था ! मोलभाव तय कर जब वह ग्राहक पेंटिंग खरीदकर ले जाने लगा तब पिकासो ने उत्सुकतावश उस ग्राहक से पूछा कि, क्या आपको मेरी पेंटिंग इतनी पसंद आयी जिसे आप खरीदना चाहते थे ? इस पेंटिंग के रेखा चित्र से आपने क्या समझा ? पता है उस ग्राहक ने क्या जवाब दिया ...नहीं मै पेंटिंग के बारे में उसके रंगों के बारे कुछ भी नहीं जानता दरअसल मैंने हाल ही में बहुत बड़ा बंगलो ख़रीदा है और उस बंगले के ड्राइंग रूम में इस पेंटिंग को सजाना चाहता हूँ ! इस वक्तव्य से पिकासो क्या किसी भी कलाकार को सात्विक संताप होना स्वाभाविक है ! पिकासो ने उस पेंटिंग को उस ग्राहक के हाथ से छीन कर पैसे वापिस कर दिए और कहा जिसे कला की जानकारी नहीं जिसके प्रति प्रेम नहीं उसे कोई अधिकार नहीं इस पेंटिंग को खरीदने का !
आज सतीश जी की पोस्ट पढ़कर मुझे कुछ ऐसा ही लगा ! मनुष्य वही पढता है जो पढना चाहता है, वही देखता है जो देखना चाहता है, वही सुनता है जो सुनना चाहता है ! वही समझता है जो समझना चाहता है जिस भावदशा में कोई लेखक अपनी रचना को पाठकों के सामने लाता है जरुरी नहीं उस भावदशा को हर कोई पाठक समझे ! पाठक अपने स्वभाव और रूचि के अनुसार टीका टिप्पणी करते है या फिर अपने ही स्वभाव को व्यक्त करते है पाठक स्वतंत्र है टिप्पणी करने के लिए !
ब्लॉग जगत में लेखन से ज्यादा टिप्पणियों पर क्यों इतना ध्यान दिया जाता है मै समझ नहीं पायी आज तक ! यह सच है की हर रचनाकार की दिली ख्वाइश होती है कि पाठक ध्यान से उस रचना को पढ़े प्रतिक्रिया करे पर ऐसा नहीं हुआ तो दुखी होने की क्या जरुरत है ?
मुझे तो बस यही लगता है टिप्पणियों के मनोविज्ञान को समझ कर उसके मोहजाल से खुद को अलग कर बिलकुल निरपेक्ष लेखन हो, हमारी रचना को सौ प्रशंसकों में से एक ने भी करीब से समझा है सार्थक प्रतिक्रिया दी यही बहुत है मेरे लिए ...अब पता नहीं इस रचना को कोई कितना समझेंगे प्रतिक्रिया करंगे :)
सतीश जी की आज की पोस्ट पर शायद टिप्पणी के रूप में मै इतना सब कुछ कह नहीं पाती इसलिए इसे उनकी पोस्ट पर प्रतिक्रिया ही समझे और इससे बेहतर आप प्रतिक्रिया देना चाहते है तो स्नेहपूर्वक स्वागत है !
सुमन जी आपने संक्षेप में सटिक और उचित कहा है। टिप्पणियां मूल्यांकन का जरिया नहीं। मूल्यांकन होता है आपका लेखन पाठक के दिल-दिमाग को किताना संतोष देता है। टिप्पणी आए नहीं आए लेखन पर उसका परिणाम नहीं हो और केवल टिप्पणियां पाने के लिए लेखन भी ना हो। हां टिप्पणियां हौसला जरूर बढाती है।
जवाब देंहटाएंwell said sumanji. simply superb. Nice one
जवाब देंहटाएंregards Madan
बात तो आपकी सही है. लेकिन यहां समस्या एक ही है कि कितने लेखक यहां पाब्लो पिकासो हैं? जो यह कहकर टिप्पणी (डिलीट) लौटा दें, पब्लिश ना करें, कि तुमने पोस्ट की सही आत्मा के अनुरूप टिप्पणी नही की?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
टिप्पणिंयों के मनोविज्ञान की बात भी आपने अच्छी की है. आज आपकी इस पोस्ट के द्वारा अपने मन की बात कहने का मौका मिला है. नीचे लिखे बिंदु ध्यान देने लायक हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढिया मंथन किया है आपने,
जवाब देंहटाएंलेकिन यहां ये मनोविज्ञान समझने की फुर्सत किसे हैं।
सब ज्ञानी हैं इसलिए दिक्कत ज्यादा है।
बढिया सार्थक विचार
टिप्पणियों का मनोविज्ञान :-
जवाब देंहटाएं1. पोस्ट पर टिप्पणियों से आप पोस्ट तथ्य का पता नही लगा सकते, आप किसी भी पोस्ट को ले लिजिये, लेखक का सारा किया धरा किसी और ही दिशा में चला जाता है.
2. ज्यादातर टिपणियां nice टाईप की होती हैं जो सिर्फ़ हाजिरी लगाने के लिये होती हैं यानि "टिप्पणी ठोक, रचना मत बांच, अगला ब्लाग"
लेकिन शायद यह भी जरूरी हैं, इससे थोडा मनोबल तो बढता ही है. जैसा की हमारी किसी एक पोस्ट पर सुश्री संगीता स्वरूप जी ने लिखा है कि टिप्पणी तो टिप्पणी होती है.
रामराम.
पौराणिक काल में यानि हिंदी ब्लागिंग के स्वर्णिम काल में टिप्पणियों को पोस्ट का धन माना जाता था शायद यही वजह है कि लोगों का टिप्पणी मोह छुटता नही है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
ज्यादातर टिप्पणियां सिर्फ़ अपनी ब्लाग पोस्ट का लिंक छोडने के लिये होती हैं. अब यह सही है या गलत? राम जाने ताऊ तो नही जानता.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
अब अंत में एक मजेदार बात बताऊं जो कि पौराणिक काल के ब्लागर तो जानते ही होंगे.
जवाब देंहटाएंहुआ यूं कि एक महिला ब्लागर की माताजी का देहावसान हो चुका था, अब मां के जाने का गम कितना सालता है यह समझने वाली बात है. उन्होनें मां को याद करते हुये एक मार्मिक पोस्ट लगाई. अब एक टिप्पणी महारथी आये और कुछ इस तरह कमेंट किया " बहुत ही सुंदर पोस्ट, पढकर मजा आगया मेरे ब्लाग पर भी पधारें"
अब बताईये ऐसे टिप्पणी वीरों का क्या करें?
रामराम.
इस संसार में भांति भांति के लोग है और सभी अति परम ज्ञानी हैं. इसलिये ज्ञान बघारना तो हमने बंद कर रखा है पर एक पोस्ट इस पर लगाने का आईडिया जरूर आ गया है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं- मेरी वह पोस्ट, रचना नहीं है !
जवाब देंहटाएंपोस्ट के आखिरी दो पैराग्राफ ब्लॉग जगत के लिए नहीं है अपितु पूरे देश की प्रिंट मिडिया एवं आम जन प्रतिक्रियाओं के लिए हैं !!
हो सके तो कृपया एक बार और पढ़ें... !
टिप्पणियाँ चाहे जैसी हो लेकिन ब्लोगर का हौसला तो बढाती है,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
ताऊ ने तो पूरा विश्लेषण कर दिया ...
जवाब देंहटाएंपर जो भी हो लिखने को प्रेरित तो करती ही हैं टिप्पणियाँ ...
well said. nice idea.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक बात कही गयी है। बधाई
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