सुबह घर से
निकलो तो
साँझ होते-होते
किसी गांव
किसी बस्ती तक
पहुंचा ही देती है
घुमावदार पगडंडी !
इसकी अपेक्षा
राजपथ अपने
मुकाम तक
पहुंचाता कम
भरमाता,भटकाता
अधिक है इसलिए
हे पितामह ...
अपनी जिम्मेदारियों का
बोझ निश्चिंत
नए कंधों पर
उतार कर
थके क़दमों को
अब तो
विराम दे दो
घायल तन
घायल
आत्मा लिए
कब तक
पड़े रहोगे इस
महत्वाकांक्षाओं की
शरशैया पर .....?
जीवन और महत्वाकांक्षाओं के बीच फंसा मन और उससे उपजे भाव ...सुन्दर अभिव्यक्ति ...सुमन जी ....!!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
पितामह के लिए सार्थक सन्देश और सुंदर अभिव्यक्ति.... !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर बिंब लिये आपने, अति उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हमारा मन ही भीष्म पितामह है जो अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते इतने संताप में रहता है. कल अच्छा होगा...परसों अच्छा होगा...इसी लालसा के चलते सूर्य के उतरायण होने का इंतजार चलता रहता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
रामराम.
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल गुरुवार (13-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ॥
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
जवाब देंहटाएंकलयुग में पितामह भी बेचैन हैं ...क्या दोष दें !!
जवाब देंहटाएंआप भी गलत नहीं है सतीश जी,
हटाएंपितामह सिर्फ राजनीती में ही नहीं कई
सारे घरों में भी है !
महत्वाकांक्षाओं की
जवाब देंहटाएंशरशैया पर .....?
सतीश जी, आपकी कलयुग की बात से ध्यान में आया कि, बीजेपी के भीष्म पितामह माने जाने वाले आडवाणी जी पर भी सुमन जी की उपरोक्त पंक्तियां सटीक बैठती हैं.
रामराम.
सही पहचाना है ताऊ,
हटाएंआभार सटीक टिप्पणी के लिए !
सहजता से मार्मिक घांव। कब तक चलना और कब रूकना हर एक को पता होना चाहिए। मिथकीय संदर्भ लेती कविता वर्तमान को व्यक्त कर रही है।
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर. आपकी इन पक्तियों को पढ़कर कैफ़ी साब का शेर याद आया कि-
जवाब देंहटाएंइंसां के ख्वाहिशों की कोई इन्तेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए दो गज कफ़न के बाद.
सटीक सलाह !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंउत्तम सलाह ,सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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sunder vyang rachana.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, बहुत सुंदर
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