हे ईश्वर,
क्या तुम ही
नित नवी कविता
लिख देते हो
सूरज के किरणों की
कलम बना कर
सूरज के किरणों की
कलम बना कर
धरती के कागज पर
रोज सुबह ?
पेड़-पौधों में
पंछियों की मधुर
कलरव में
फूलों की लिपि में
जीवन उत्सव के
क्या तुम ही
अर्थ नए
अर्थ नए
रच देते हो
रोज सुबह ?
जिसके नैपथ्य में
शब्द कम,गंधवान
मौन अधिक
भर देते हो
कैसे कोई पढ़े
तुम्हारी इस
रचना को ....??
बंद आँखों से ..अहसास के नेत्रों से .......बहुत ही सुन्दर रचना सुमनजी ..:)
जवाब देंहटाएंशब्द कम,गंधवान
जवाब देंहटाएंमौन अधिक
भर देते हो
बहुत सुंदर रचना ...
कैसे कोई पढ़े
जवाब देंहटाएंतुम्हारी इस
रचना को ....??
सुंदर प्रस्तुति |
कैसे कोई पढ़े
जवाब देंहटाएंतुम्हारी इस
रचना को ....??
अत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत ही उम्दा रचना.....
जवाब देंहटाएंजिसके नैपथ्य में
जवाब देंहटाएंशब्द कम,गंधवान
मौन अधिक
भर देते हो
कैसे कोई पढ़े
तुम्हारी इस
रचना को ....??
प्रकृति चक्र पर सचमुच आश्चर्य होता है. सुंदर प्रस्तुति.
आपको गणतंत्र दिवस पर बढियां और शुभकामनायें.
कैसे कोई पढ़े
जवाब देंहटाएंतुम्हारी इस
रचना को ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
बहुत सुन्दर ...गड्तंत्र दिवस की हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंशब्द गौण है
जवाब देंहटाएंझूम रही धरा
मस्त गगन भी
सुगंधित पुष्प,और
पंछियों के कलरव में
सृष्टि की अंगनाई
आज भरा मौन है
अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंप्रकृति के विभिन्न रंगों का बढिया चित्र खींचा है।
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