रविवार, 6 मई 2012

चलने में जो मजा है मंज़िल में नहीं .......


जीवन में अगर कोई रूचि ना हो तो जीवन नीरस और बोरियत से भरा लगता है ! ऐसे लगता है जैसे जीवन में कोई चैलेन्ज नहीं कुछ नहीं यह भी कोई जीना है भला ? जब रूचि की बात आती है तो, रूचि सबकी अलग-अलग होती है ! किसी को संगीत में रूचि है !किसी को डान्स में रूचि है ! किसी को दूसरों की निंदा करने में रूचि है लड़ाई झगड़े में रूचि है ! किसीको पढाई लिखाई में रूचि है ! मान लीजिये की रूचि का नाम ही जिंदगी है ! मैंने कही पढ़ा था कि, अमेरिका में एक प्रसिद्ध दार्शनिक हुआ था ! नाम था  "जान डैबी" वे भी यही कहा करते थे क़ी जीवन में रूचि का नाम ही जीवन है ! जिस दिन तह रूचि समाप्त हुई समझ लो जीवन ख़तम हुआ ! ओशो कहते है अगर कोई साधक सत्य क़ी खोज पर है, खोज में जो मजा है मंजील में नहीं ! जान डैबी से उनकी नब्बे वी वर्षगाँठ पर उनसे बातचीत करते हुये मित्र ने पूछा कि दर्शन शास्त्र का जीवन में क्या उपयोग है बताओ ? डैबी ने शांतिपूर्वक अपने डाक्टर मित्र से कहा क़ी, दर्शन के अध्ययन से पहाड़ों पर चढ़ाई संभव हो जाती है ! मित्र ने न समझते हुये कहा ......लेकिन पहाड़ों पर चढ़ने से कौन से लाभ है ? डैबी खूब हँसे और बोले क़ि, लाभ यह है क़ि एक पहाड़ के बाद दूसरा फिर तिसरा फिर चौथा ! जब तक यह सिलसिला जारी रहेगा जीवन में चुनौती कायम रहेगी ! और जब तक चुनौती है जीने में आकर्षण है रूचि है ! और जिस दिन यह आकर्षण खो जाता है जीने क़ी रूचि भी समाप्त हो जाती है !

अनछुए पहलुओं पर अच्छेसे अच्छा लिखना सच में एक रायटर को पहाड़ों पर चढने जैसी चुनौती है ! पता नहीं कब कैसी प्रतिक्रिया मिले कब माहोल ख़राब हो कहा नहीं जा सकता ! बहुत बार लिखने की रूचि बन बिगड़ रही है ! एक न एक दिन हम सबको यहाँ से विदा होना ही है किन्तु जब तक यहाँ पर है यक़ीनन एक सुखद यात्रा रहेगी !

15 टिप्‍पणियां:

  1. मंजिल पाने के लिए जो चलने में मजा है मंजील में नहीं .....

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  2. हाँ....मंजिल से ठहराव का भान जो होता है.......

    सादर
    अनु

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  3. सुन्दर आलेख!...एक लक्ष्य हासिल करने के बाद,दूसरा लक्ष्य सामने होना ही चाहिए!...तभी जीने का लुफ्त आप उठा सकतें है!..आभार!

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति,

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  5. बहुत खूब ! सुन्दर प्रस्तुति ।

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  6. आपका कहना सही है ... चलते रहने मे उम्मीद है मंजिल् पे पहुंचकर तो विश्राम है ...

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  7. मज़े की बात यह है कि मंज़िल पर बने रहने के लिए भी चलना पड़ता है!

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  8. अपनी इस सुन्दर रचना की चर्चा मंगलवार ८/५/१२/ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर देखिये आभार

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  9. बिना चुनौती के जीवन का कोई मतलब ही नहीं है।

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  10. जीवन को गतिमान बनाये रखते ही हमारी कोशिशें ....बहुत सुंदर

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  11. सच है! किसी ने कहा था, "ये जीवन हमारा निरंतर सफ़र है, जो मंज़िल पे पहुँचे तो मंज़िल बढा दी।"

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