सुख,
कहाँ हो तुम
कैसी है पहचान
तुम्हारी
बहुत खोजने
पर भी नहीं
मिलते हो !
रोज तुम्हे ही
खोजती हूँ
यहाँ वहाँ घर के
कोने-कोने में
इंटरनेट पर
किस गाँव किस
शहर किस गली में
रहते हो
अपना पता तो
बतलाओ !
सुख तुम सच में
महान हो
क्या इसीलिए
प्रशंसा,पद,प्रतिष्ठा की
ऊंची शाखों पर
खिलते हो ?
कैसी है पहचान
तुम्हारी
बहुत खोजने
पर भी नहीं
मिलते हो !
जब सुख के क्षण आते हैं तो बस उनमे रम जाते हैं ... पहचान करना भूल जाते हैं ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबस मिल गया :}
हटाएंआभार .......
क्या इसीलिए
जवाब देंहटाएंप्रशंसा,पद,प्रतिष्ठा की
ऊंची शाखों पर
खिलते हो ?
सुन्दर प्रस्तुति ।
बधाईयाँ ।
महान हो
जवाब देंहटाएंक्या इसीलिए
प्रशंसा,पद,प्रतिष्ठा की
ऊंची शाखों पर
खिलते हो ?
बढ़िया प्रस्तुति,प्रभावित करती सुंदर रचना,.....बधाई सुमन जी ....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
अपने ही भीतर तो है सुख.......
जवाब देंहटाएंबस मौका हमे देना है उसको बाहर निकलने का.....
बहुत सुंदर भाव सुमन जी.
सादर.
बहुत बहुत आभार .....
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुख तुम सच में
जवाब देंहटाएंमहान हो
क्या इसीलिए
प्रशंसा,पद,प्रतिष्ठा की
ऊंची शाखों पर
खिलते हो ?
....सुख तो हमारे चारों ओर है, ज़रूरत है उसे पहचानने की....बेहतरीन प्रस्तुति...
बहुत बहुत आभार .....
हटाएंपहचान मिल जाये तो हमें भी बताइयेगा :) ,बहुत सुंदर रचना आभार
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
हटाएंसुख की पहचान तो रचना में ही है :}
आभार आने का .....
सुख को याद ही हम दुःख में करते हैं तो समझेंगें पह्चानेंगें कैसे ....सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनींद है उनकी उड़ी हुई जो
जवाब देंहटाएंबैठे ऊंची शाखों पर
जीना सीखो प्रतिक्षण स्व में,
जो तुम भी सुख चाहो गर!
सार्थक टिप्पणी की है आपने आभार ............ लेकिन आपसे एक प्यारी सी शिकायत है सर,
हटाएंआपने अपने ब्लॉग पर टिप्पणी करने की सुविधा बंद क्यों कर दी है ?
जानती हूँ कोई खास कारण ही रहा होगा ! अगर मेरी दृष्टिकोण से देखे तो,
टिप्पणियों को किसी राजनीती का हिस्सा ना बनाया जाए तो यह एक हमें आपस में
जोड़ने का, सवस्थ संवाद कायम करने का अच्छा सेतु है !
मुझको तो रंगों से मोह नहीं, फूलों से ...........
मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा हूं। आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।
हटाएंटिप्पणी का कॉलम कुछ ऐसे ब्लॉगों को पढ़ने के प्रयोजन से बंद किया गया था जिन पर मैं अब तक नहीं गया ताकि उपलब्ध समय उसी पर लगाया जा सके। कई ब्लॉगों के सम्पर्क में आया भी हूं जिन पर कुछ अच्छी टिप्पणियां भी पढ़ने को मिली हैं।
दुर्भाग्य से,हिंदी ब्लॉगिंग में माहौल इन दिनों ठीक नहीं है। टिप्पणी से इस कारण भी मन उचट जाता है। सोचता हूं,जहां तक हो सके,बगैर टिप्पणियों के ही ब्लॉगिंग का अभ्यास किया जाए।
आपकी सहृदयता के प्रति कृतज्ञ हूं। लिखती रहें। टिप्पणी करूं न करूं,पर मैं आपको पढ़ रहा हूं,इतना सदैव स्मरण रहे।
बहुत सुंदर प्रस्तुति..... सुमन जी ....
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 03 -05-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....कल्पशून्य से अर्थवान हों शब्द हमारे .
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदिल की परतों में सोये हो,
जवाब देंहटाएंलगते तो, कुछ अपने जैसे
मन में इतने गए समाये
तुम्हें छिपाए, बोलो कैसे ,
जबसे तुमको मैंने देखा , पलकें अपनी बंद रखी हैं !
कौन जान पायेगा तुमको, कैसी है पहचान तुम्हारी ?
सतीश जी,
हटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ है इसे पूरा गीत बनाइये
मुझे इस गीत का इंतजार रहेगा !
आभार .......
बढ़िया प्रस्तुति,प्रभावित करती सुंदर रचना,.....बधाई जी ....
जवाब देंहटाएंबहूत हि सुंदर रचना है...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती.....
सुंदर रचना सुमन जी ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंजहां 'कस्तूरी' बसती है
जवाब देंहटाएंsukh hota hai to ham use yaad hi nahi kar paate aur nahi hota to use khojte rahte --------aapki rachna dil ko chu gayi
जवाब देंहटाएंहमेशा छिपा रहता है सुख -लगता है पीछे कहीं छूट गया है !
जवाब देंहटाएंसुख के पीछे भागने पर वह फिसलता जाता है पर पीछा ना करो तो स्वयं ही आ जाता है । सुखी होना आसान है पर आसान होना ...............
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना..बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
सुख बंद जो है आज बड़े लोगों की तिजोरी मे ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंयह तो मृगतृष्णा है। दिखती है, नहीं भी दिखती।
जवाब देंहटाएंये सब wese ही है जैसे अंदर की रोशनी बाहर के अंधेरे में ojhal हो जाती है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
खुशी चलकर किसी के घर कभी यूँ ही नहीँ आई
जवाब देंहटाएंजिसने जोर अजमाया उसी के साथ भरमाई।