खुशी यहीं कहीं,भीतर ही थी हमारे,पर अपने होने और चाहने के दंभ में खो सी गई। हमारा सारा दुख अर्जित है। जतन किया तो था खुशी पाने को,पर मिला कुछ और। अब यह दुख हमारे जीवन का इस क़दर हिस्सा बन गया है कि लोग उल्टा सवाल पूछने लगे हैं:"क्या बात है,बड़े खुश लग रहे हो?"
very nice...............
जवाब देंहटाएंthats the key thing ....
regards.
वाह...बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
बढ़िया प्रस्तुति .... सब फसाद की जड़ ही तो " मैं " है ॥
जवाब देंहटाएंखुशी यहीं कहीं,भीतर ही थी हमारे,पर अपने होने और चाहने के दंभ में खो सी गई। हमारा सारा दुख अर्जित है। जतन किया तो था खुशी पाने को,पर मिला कुछ और। अब यह दुख हमारे जीवन का इस क़दर हिस्सा बन गया है कि लोग उल्टा सवाल पूछने लगे हैं:"क्या बात है,बड़े खुश लग रहे हो?"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....विश्लेषण !
हटाएंमेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .... स्पैम में देखिएगा
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