चारोओर प्रेमपर मचा बवाल ! फिर भी,प्रेम शब्दोंमे व्यक्त नहीं हो पाया ! क्या है प्रेम ? कैसा है प्रेम क्या है उसकी परिभाषा? अरे! प्रेम कही वो तो नहीं? जिसने कल रात अपनी पत्नी को शक के आधार पर जिन्दा जला दिया था ! दस साल का प्रेम का गठबंधन पल भर मे तोड़ दिया था ! प्रेम कही वो तो नहीं ? जिसने अपनी ही क्लासमेट लड़की से प्यार किया था ! जब की प्यार एकतरफा था, लड़कीने प्रेम से इनकार किया तो,लडकेने असिड्से (acid) हमला कर उसके सुंदर चहरे को झुलसा दिया था ! बेचारी लड़की उपचार में अगर ठीक भी हो गई तो, अपने चहरे को रोज दर्पण में देख कर पल-पल मरा करेगी ! प्रेम के नाम से जिंदगीभर नफरत करेगी ! शायद प्रेम कही खो गया लगता है ! और हमारा मन कस्तूरी मृग बनकर उसको तलाश रहा है जंगलों, पहाडोंमे लहूलुहान -सा होकर, अपने ही अस्तित्व को अपनेही हाथों घायल ! कही प्रेम ये तो नहीं ......जिसके नाम मात्र से छाने लगती है खुमारी सुनाई देने लगते है मंदिर की, घंटियोंकी आवाजे! गूंजने लगते है कानोंमे पवित्र अजान के स्वर ! तब हम धरती से कई ऊपर किसी दिव्य लोक में पहुँच जाते है ! तब प्रेम प्रार्थना बन जाता है ! प्रिय के प्रति समर्पण बन जाता है प्रेम ! तन चन्दन मन धूप बन जाता है प्रेम ! कही हमारी ही नाभी से उठ रही कस्तूरी सुगंध तो नहीं प्रेम ?
मंगलवार, 26 अप्रैल 2011
बुधवार, 20 अप्रैल 2011
कच्ची कैरी ....... (स्मृतियाँ)
इन गर्मीयोंके दिनों में, ताज़ी,ठंडी हवा का आनंद लेने मै और मेरी बिटिया अक्सर हमारे छतपर चले आते है! वह कानोंमे इयरफोन लगाये अपने मोबाईल पर फ़िल्मी गीतोंका आनंद लेती है ! और मै हमेशा की तरह अपने खयालोंमे खो जाती हूँ ! आजकल कच्ची कैरियों का सीजन चल रहा है! जैसेही,कैरीयोंका नाम सुना की मुँह में पानी आजाता है ! किन्तु इस उम्र में, कच्ची कैरियोंकी कल्पना मात्र से मेरे तो दांत खट्टे होने लगते है ! कैरी खाने की बात तो दुरकी है ! बचपन में कैरियोंको काटकर उसके ऊपर नमक मिर्च लगाकर खानेका मजा ही कुछ और था ! छतपर अचानक इन कैरियोंका जिक्र मै क्योंकर करने लगी भला ? यही सोच रहे है ना? बस वही तो बताने जा रही हूँ ! हमारे पड़ोस में बूढ़े चाचाजी रहते है ! हमारे मुहल्ले में सब लोग उनको यही नामसे जानते है ! उनके आँगन में आम का बहुत बड़ा पेड़ है ! इतना बड़ा की, उसकी लम्बी-लम्बी शाखायें हमारे छत तक पहुँच गई है वह भी कैरियोंसे लदी हुई ! बेचारे पेड़, हम मनुष्य की तरह थोड़े ही अपने पराये का भेद करते है ! वह तो जिधर चाहे अपनी शाखाओंको बिनधास्त फैला देते है! कैरियोंसे लदी शाखायें,हाथ बढ़ाने की देर कैरी हाथ में ! जैसे ही मैंने कैरियोंकी तरफ हाथ बढाया मेरी बिटिया ने दुरसे ही, चिल्लाकर कहा ना .....ना....ममा किसीके पेड़ की कैरिया चुराना बुरी बात है ! तुम्हे चाहिए तो मै कल बाजार से लाकर दूंगी ! हाँ ..हाँ.. मुझे पता है आजकल कच्ची कैरियोंका सीजन चल रहा है ! बड़ी आसानी से ठेला बंडीयोंपर मिलने लगी है ! मैंने कुछ नाराजगीसे, अपने बढे हुये हाथोंको वापिस खींचते हुये कहा ! किसी बच्चे को उसका मनपसंद काम करनेसे रोकने पर जो स्थिति होती है वही,स्थिति मेरी उस समय हुई ! बचपन की उन पूरानी यादोंमे एकबार फिरसे खो गई मै !
नदी के किनारे छोटासा प्यारा गाँव है हमारा ! उस गाँव में हमारी अपनी आमोंकी आमराई है! विभिन्न किस्म के आम, मीठे आम, रसीले आम, अचार के आम ना जाने कितनी किस्मे ! जब आम पककर तोड़ने लायक हो जाते है तो, उसे पेड़परसे बहुत सावधानीसे उतारा जाता है ! ताकि आम निचे जमीन पर गिरकर ख़राब न हो ! प्राकृतिक रूपसे पके आमोका स्वाद बहुत मीठा होता है ! आजकल शहरोंमे आम,चीकू,केला,संतरा इन सब फलोंको कार्बाइड से पकाया जाता है ! फलोंका प्राकृतिक स्वाद, गंध हम तो जैसे भूल ही गए है ! खैर, पके हुये आमोंको टोकरियों में भर-भरकर जब मेरे बाबा (पिताजी) अपने सगे-सम्बधियोंके घर भिजवाते तो, उनके स्नेहभरे तोहफे का सालभर तारीफ करते नहीं थकते थे लोग ! हमारी अपनी आमराई होने के बावजूद हम बच्चे दूसरोंके बगीचे की कच्ची कैरियाँ रोज चुराकर लाते ! जब माँ को इस बात का पता चला तो माँ ने खूब डांट-फटकार लगाई ! कैरियोंको काटकर उसपर नमक- मिर्च लगाकर चटखारे ले-लेकर खाने का मजा, माँ के डांट-फटकार से कही जादा अच्छा लगा था तब ! जब से बाबा गए है आमराई का ध्यान रखने वाला कोई नहीं ! पिछली बार जब मै गाँव गई थी बस कुछ गिने चूने ही, आम के पेड़ बचे है !
ममा निचे चलो मच्छर सता रहे है ! अचानक बिटिया की आवाज से मै वर्तमान में आ गई ! काफी अँधेरा घिर आया था छतपर!
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
शिष्ठाचार कही दिखावा तो नहीं है ,,,,,,,
शिष्ठाचार हम बचपन में ही,सीखकर बड़े होते है ! इस शब्द से सुधी पाठक भली-भांति परिचित है ही, मै समझती हूँ अलगसे विस्तार करने की जरुरत नहीं
है ! शिष्ठाचार का पालन हम सब बड़ी निष्ठांसे करते है किन्तु बर्नाड शा जैसे लोग इसका पालन नहीं करते वे तो सीधे-सीधे अपनी बात सामनेवाले के मुह पर बोल देते है ! सत्याचार का पालन करते हुए लगते है बर्नाड शा ! कही न कही हम सब भी अन्दर से जानते है की, शिष्ठाचार केवल दिखावा है और कुछ नहीं, पर शिष्ठाचारवश किसीसे कुछ कहते नहीं! मैंने सुना है की, गांधीजी जब "गोलमेज-कांफ्रेस" के लिए लन्दन गए हुए थे ! उनका कोई गाँधीवादी भक्त बर्नाड शा से मिलने गया था! बातों-बातोंमे उन्होंने बर्नाड शा से पूछा की, आप गांधीजी को महात्मा मानते है या नहीं? तब बर्नाड शा ने जो उत्तर दिया हमारे सोचने लायक है ! उन्होंने कहा गांधीजी महात्मा है इसमें कोई शक नहीं किन्तु नंबर दो के है! हाँ यही सच है मै जादासे जादा उनको नंबर दो पर रखता हूँ! गांधीजी का भक्त बहुत परेशान हुआ सोचा होगा कैसे अहंकारी आदमी से पाला पड़ा है ! और नंबर एक आपकी नजर में कौन है ? लेकिन बर्नाड शा इमानदार आदमी प्रतित होते है उन्होंने कहा नंबर एक तो मै हूँ! क्या हर आदमी अंदरसे यही नहीं सोचता ? खुद को ही अंदरसे श्रेष्ठ समझता है पर उपरसे शिष्ठाचार का पालन करता हुआ लगता है !
अरबी में एक कहावत है की, परमात्मा जब किसी आदमी को बनाता है, और दुनियामे भेजने से पहले उसके कान में कहता है की, मैंने तुझसे अच्छा, तुझसे श्रेष्ट किसीको नहीं बनाया है और आदमी इसी मजाक के सहारे सारी जिन्दगी काट लेता है पर शिष्ठाचारवश किसीको कुछ नहीं कहता ! पर शायद उसे पता नही की परमात्मा ने यही बात सबके कान में कही हुई है ! लगता है बर्नाड शा ने सारी मनुष्य जाती पर करारा व्येंग्य किया है !
रविवार, 10 अप्रैल 2011
ब्लॉग जगत मेरी नजर में ..............
आज मेरे ब्लॉग पर किसी मित्र की टिप्पणी कम सुचना देखकर सोचा की, ब्लॉग जगत को मै जिस नजर से देखती हूँ आज उसीसे परिचित कराया जाए! ताकि मेरी बात समझने में शायद आसानी हो, सारी प्रकृति जिस प्रकारसे भगवान का उपवन है, उसी प्रकार ब्लॉग जगत भी हमारा अपना उपवन है ! इसमें विभिन्न किस्म के पेड़ है,पौधे है विभिन्न रंगोंके,खुशबुदार फूल है गुलाब,मोगरा,चमेली केवड़ा न जाने फूलोंके कितने प्रकार है साथ में घास के ऊपर खिले हुये फूल भी है ! कभी आपने इस घास के फूल के पास बैठे है ? शायद नहीं हमें तो गुलाब ज्यादा पसंद आते है ! पर मैने उसको करीब से महसूस किया है! जिस गुलाब के खिलने में इश्वर की उर्जा काम कर है वही उर्जा उस घास के फूल में भी कर रही है ! फिर भी घास का फूल कभी गुलाब होने की कोशीश नहीं करेगा ! वह तो सुबह उठते ही अपनेही आनंद में खिलता है हवा में नाचता है गाता है गुनगुनाता है, एक घास का फूल जितना इमानदार है हम मनुष्य उतने इमानदार नहीं हो सकते क्या ? उस इश्वर की उर्जा को महसूस क्यों नहीं करते ? इतना दरिद्री उसने किसी को नहीं बनाया है हर एक में कोई न कोई विशेषता है उसको पहचानिए ! हम अपने जैसे ही होने की कोशीश में लगे रहे जरुर एक दिन कामयाब होंगे !
और एक बात जब बच्चा सात -आठ महीनेका होता है तब बात करने की कोशीश में तुतलाता है माँ भी तुतलाकर उसका हौसला बढ़ाती है तब उस माँ को, हम सब को वह बच्चा बहुत प्यारा लगता है क्योंकि उसके तुतलाने में एक मिठास है एक माधुर्य है! एक सच्चाई है हमें भी उस सच्चाई का अनुसरण करना है ! भले ही अच्छा बोलने में कुछ दिन, साल लग जाए ! इस प्रकार के अपराध को मै बहुत बड़ा अपराध नहीं मानती ! उस बच्चे की तुतलाहट पर जो ध्यान नहीं देते मै उनको बहुत बड़ा आपराधी मानती हूँ ! हमारे परिवारों मे किसी कवि को सम्मान नहीं दिया जाता उनकी नजर में कवि होना निकम्मेपन की निशानी है ! अमेरिका में मैंने सुना है की बच्चोंको उनके स्कूल मे ही कवितायेँ लिखने का टेक्नीकल प्रशिक्षण मिलता है! बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की हमारे पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है ! यह सच है की कुछ भौरोंको, कुछ तितलीयों को विशेष रंग, गंध के फूल ही बहुत भाते है ! हम भले ही घास के ऊपर खिले फूल है, है तो उसी इश्वर की रचना उसका
सम्मान करे!
सम्मान करे!
बुधवार, 6 अप्रैल 2011
बढ़ा दी इतना कहकर शमा ने परवाने की हिम्मत है जलना काम उनका जो है दिलवाले जिगरवाले .......
किसी शायर की यह पंक्तियाँ मैंने अपने प्यारे मित्र के नाम लिखे है! जीवन में सब कुछ होते हुये भी मित्र का अभाव हम सब को कही न कही खलता है ! जब उदासी हर पल बढ़ने लगती है तब मन ऐसा एक मित्र चाहने लगता है जिसके साथ उदासी के उन पलोंको बाँट सके,तब मित्र का साथ हमें संबल देता है ! मित्र की सहानुभूति ही अमोघ शस्त्र है जिससे हर परिस्थितियों से हँसते-हँसते लड़ा जा सकता है!
बढ़ा दी इतना कहकर शमा ने परवाने की हिम्मत
है जलना काम उनका जो है दिलवाले जिगरवाले !!
शमा की कही इतनी सी बात पर, परवाने को जलने की हिम्मत आजाती है !
बढ़ा दी इतना कहकर शमा ने परवाने की हिम्मत
है जलना काम उनका जो है दिलवाले जिगरवाले !!
शमा की कही इतनी सी बात पर, परवाने को जलने की हिम्मत आजाती है !
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
पापा कहते है बड़ा नाम करेगा बेटा हमारा ऐसा काम करेगा ......
कुछ रोज पहले एक कहानी पढ़ी! एक सर्कस में एक कुत्ते का पिल्ला वायलिन बजा रहा था सारे प्रेक्षक तल्लीनता से सुन रहे थे, इतने में एक डरावना कुत्ता उस पिल्लै पर झपट कर उसे उठा ले जाता है !
प्रेक्षक चिल्लाते है, "क्या हुआ-क्या हुआ ? इतने में सर्कस का संचालक कहता है कि माफ़ करना, दरअसल वो कुत्ता उस पिल्ले का बाप था और उसे डॉक्टर बनाना चाहता था, पर उस पिल्ले को संगीत में रूचि है !
पता नहीं, कहानी कहाँ तक सच है, किन्तु आजकल बच्चों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है! अभिभावक अपने अधूरे सपने पुरे करने के लिए अपने बच्चों पर जरुरत से ज्यादा बोझ डालते है, जो गलत ही नहीं ,एकदम अनुचित है ! पढाई का बोझ और ज्यादा आशाये बच्चों के विकास पर बुरा असर डालती है !
मै हमेशा पेरेंट्स,टीचेर्स मीटिंग में जाती थी अक्सर देखती कि पेरेंट्स एक-एक मार्क्स के लिए टीचर्स से झगड़ते है कि, हमारे बच्चे को इस सब्जेक्ट में एक नंबर कम क्यों आया ? बच्चे को ९० प्रतिशत नंबर मिले है, तो उन्हें ख़ुशी नहीं होती, पर दुसरे बच्चे से एक नंबर कम आया,इसका उन्हें खेद होता है ! क्या यह उचित है ? एक लड़का हमेशा क्लास में फर्स्ट आता है कभी-कभी सेकेंड या थर्ड आ जाता है तो उसके पेरेंट्स रिपोर्ट कार्ड पर साईन नहीं करते, उसे "पनिशमेंट " देते है ! वह लड़का हमेशा फर्स्ट आने के चक्कर में सदा पढता रहता है ! दुसरे बच्चों के साथ कभी नहीं खेलता, न ही उनके साथ टिफिन खाता है सारे क्लासमेंट्स उससे जलते है, वह भी उनसे उखड़ा-उखडा रहता है
सब माँ-बाप चाहते है कि उनके बच्चे दूसरों से प्रथम आये, डॉक्टर बने, इंजीनियर बने भले ही उनमे प्रतिभा हो या ना हो! हर बच्चा अनूठा होता है, उसमे प्रतिभा भी अलग-अलग होती है ! पेरेंट्स को परखना चाहिए कि अपने बच्चों में क्या कमी है! फिर उसके अनुरूप उसे अच्छा माहोल दे, अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए! हो सकता है वे चित्रकार बने, सिंगर बने, डान्सर बने जो भी बने उनकी मर्जी भला अपने बच्चों को अपने माँ-बाप से ज्यादा और कौन जान-समझ सकता है भला !
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