हम पौराणिक कथाओं की गहराई में शायद ही कभी पहुँच पाते है ! इस तरह तो बिलकुल भी नहीं जिस तरह कोई दार्शनिक, वैज्ञानिक चिंतक अपनी पैनी दृष्टी से देखता है तो सुधी पाठको की दृष्टी को ही नहीं दृष्टिकोण को ही बदल देता है, आईये जानते है कैसे ! कल ओशो की एक किताब में इस कथा को पढ़ रही थी तो सोचा आप तक पहुँचाउ ताकि, आप भी उतना ही आनंद उठा सके जितना मैंने इस कथा को पढ़कर सोचकर उठाया है !
दे दी … ! एक बार जब गौतम तीर्थ-दर्शन के लिए गए, तो राजा इंद्र ने उन्ही का रूप धारण कर लिया, और आश्रम के भीतर अहिल्या के पास पहुँच गए … तभी गौतम ऋषि आए और उन्होंने अहिल्या को और इंद्र को श्राप दिया ! ( इस कहानी को भली भांति आप सब जानते है ) चलिए अब हम इस प्रतीकात्मक कहानी के गहरायी में उतरते है …
गौतम किरण-विज्ञान के पहले ज्ञाता थे ! तम के पार जा सके, अँधेरे के पार इसलिए गौतम नाम हुआ ! अहिल्या का अर्थ है जो हिल न पाए ! यह रासायनिक पदार्थ था गौतम ऋषि की प्रयोगशाला में !
इंद्र सूरज-मंडल के अंतर की एक किरण का नाम है ! वही किरण प्रयोगशाला में आयी तो खोज का काम आगे बढ़ा ! श्राप देने का अर्थ है कीलित कर देना ! वही किरण कीलित हुयी तो पदार्थ के चमक उठने पर गौतम ने, उसमे अपना ही रूप देखा ! भग का अर्थ है योनि, वह नाड़ी जो सात ग्रहों की किरणों को धरती पर लाती है ! और जो गौतम ने कहा इंद्र, तुम हजार भग वाले हो जाओ, उसका अर्थ है तुम हजार नाड़ियों वाले हो जाओ और ब्रम्हांड की शक्ति को धरती पर ले आओ ! और गौतम ऋषि ने अहिल्या से कहा … तुम शिला बन जाओ इसी तरह प्रयोगशाला में रहो, जब तक मेरी खोज पूरी नहीं होती ! साथ ही वरदान दिया जब तुम गोमती नदी में मिल जाओगी, अति सुंदर हो जाओगी ! यह किसी बहती हुई नदी से मिलना रासायनिक खोज का दुनिया में विचरण करने का संकेत है, विज्ञान का लोगों तक पहुँच जाना … !
ये कहानी और इतनी गहराई लाजवाब बेहतरीन सार्थक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंइस पौराणिक कथा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पढना और समझना अच्छा लगा। पौराणिक घटनाओ और कथाओं को आधुनिक युग के तार्किक बुद्धिजीवियों के समक्ष रखें, तो वे इसे आधारहीन और मिथ्या घोषित कर देंगे। अतः पुराणों में वर्णित कथाओं को विवेकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना आवश्यक भी है।
जवाब देंहटाएंअपनी पुरानी कथाओं को वैज्ञानिक तरीके से देखना और सोचना भी अपने दार्शनिकों ने किया है ... ऐसा दृष्टिकोण ये बताता है की पुरातन समय में अपना समाज कितना तार्किक और गहन सोच लिए था ... आज इसी समझ की जरूरत है जो शायद आने वाले समय में पुनः समाज जागृत हो सके ...
जवाब देंहटाएंपौराणिक कहानी का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण, वाह। वैसे भी हमारे शास्त्र घूञ ही होते हैं जोो जैसे दिखता है उससे कहीं गहन होता है।
जवाब देंहटाएंकृपया घूञ की जगह गूढ पढें ।
जवाब देंहटाएंकृपया घूञ की जगह गूढ पढें ।
जवाब देंहटाएंपौराणिक कहानी का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण, वाह। वैसे भी हमारे शास्त्र घूञ ही होते हैं जोो जैसे दिखता है उससे कहीं गहन होता है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंकहानी को अच्छी तरह से बतायी जाए तो कितना अच्छा लगता है पढ़कर. जैसा इस पोस्ट में हुआ. वैसे तो गौतम और अहिल्या की कहानी में ही कितना अंतर है वाल्मीकि और तुलसीदास के बीच. एक कहता है राख बना दिया, एक कहते है पत्थर बना दिया. कहानी का मर्म बीच में ही खो जाता है.
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