बुधवार, 25 सितंबर 2013

आज मॉर्निंग वाक पर !

इन दिनों सतीश जी का लिखने का उत्साह देखकर कितना अच्छा लगता है न एक मन ने कहा , एक के बाद एक नायाब शेर लिख मार रहे है ! और ताऊ जी  हर दुसरे दिन एक पोस्ट लिखने वाले पता नहीं इन दिनों कहाँ ग़ायब से हो गए है लगभग तीन हफ्ते से एक भी नई पोस्ट नहीं आयी उनकी !ब्लोगिंग के अलावा भी कितने सारे काम होते है किसी काम में व्यस्त होंगे दुसरे मन ने कहा  ! रश्मि प्रभा जी ने भी लिखना कितना कम कर दिया है ! संगीता जी भी पंधरा दिन को एक पोस्ट लिखती है ! रमण जी तो महीने में कभी एखाद पोस्ट डालते है अपने ब्लॉग पर, कुछ मित्रों की वजह से जो रौनक दिखाई देती है हमारे ब्लॉग जगत में पता नहीं क्यों आजकल कुछ सुना -सुना सा लग रहा है टहलते टहलते अचानक मेरे इन विचारों को ब्रेक सा लगता है, मेरे बाजू से जीतनी तेजी से मिसेज वर्मा और मिसेज शर्मा वाकिंग करते  हुए गुजर रही थी उतनी ही तेजी से आपस में टॉकिंग कर रही थी न चाहते हुए भी उनकी बाते मेरे कान में पड़ ही गई  … !

 मिसेज वर्मा मिसेज शर्मा से पूछ रही थी जो की दोनों अच्छी दोस्त भी है   । "लगता है आज अकेली ही आयी हो ? शर्मा जी नहीं आए टहलने क्या बात है ? पता नहीं तुम वर्मा जी को रोज सुबह टहलने कैसे ले आती हो ? मुझे इनको जगाने में बड़ी दिक्कत होती है "! सहेली की बात सुनकर वर्मा साहब की मिसेज ने कहा  … "वो भी कहाँ अपने आप जागते है मुझे जबरदस्ती जगा कर लाना पड़ता है आखिर घर के साथ साथ मुझे उनकी बढती तोंद का भी ख्याल रखना पड़ता है "! मै तो रोज सुबह उनको जगाने के लिए एक तरकीब अपनाती हूँ क्यों न तुम भी वह तरकीब अपनाओ ! कौन सी तरकीब ?सहेली ने पूछा ! मेरी जो पालतू बिल्ली है न मै उस बिल्ली को मजे से सो रहे अपने पति पर फेक देती हूँ ! लेकिन बिल्ली फेकने से कैसे कोई उठता है ?सहेली का मासूम सा प्रश्न सुन कर वर्मा साहब की मिसेज ने कहा   "उठना ही पड़ता है,क्योंकि वो अपने कुत्ते के साथ सोते है उनके कुत्ते और मेरी बिल्ली में जब घमासान युद्ध छिड़ता है अपने आप उठ कर टहलने आ जाते है बड़ा लाभदायक तरीका है आजमा कर देख लेना कल "! 

फिर उनकी बाते मेरे कान की पहुँच से बहुत दूर होती गई      ….! क्या मिसेज शर्मा  अपने सहेली की बतायी हुयी तरकीब अपनायेंगी कल ? क्या मॉर्निंग वाक् पर शर्मा जी टहलने आ जायेंगे ? आपके साथ साथ मुझे भी उत्सुकता है कल के सुबह की  … !

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

ताजी चौकाने वाली खबर यह भी है …

दिन जो की 
कल भी वही था 
आज भी वही है 
जो कल आयी थी 
वही तो सुबह है !
हाथ में फीकी 
चाय की प्याली 
साथ में अख़बार 
अख़बार में वही 
बासी खबरे है !
भ्रष्टाचार,कालाबाजारी 
भ्रष्ट अफसर बेईमान नेता 
बाबाओं के वही सब 
काले चिट्टे कारनामे है !
नई सुबह में ऐसी 
क्या खास बात है ?
आम आदमी को प्याज 
कल भी रुलाता था 
आज भी रुला रहा है 
महिलाओं पर अत्याचार 
कल भी होते थे 
आज भी हो रहे है  !
ज्योति बुझाने वालों को 
क्या हक़ बनता है 
उजालों में रहने का ?
नाबालिग अपराधी को 
तीन साल की सजा ?
इस फैसले के दुसरे 
या तीसरे दिन से ही 
नाबालिग बलात्कारियों की 
संख्या में अचानक वृद्धि 
हुई है !
बासी ख़बरों के साथ-साथ 
आज की ताज़ी चौंकाने वाली 
खबर यह भी है  … !!

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

हमारे त्योहार …

इस बार गणेश चतुर्थी पर मेरा बेटा पुणे से हैदराबाद चार दिनों के लिए घर आया हुआ था ! महीनों हुए थे उसे देखे हुए अचानक शुक्रवार की सुबह सुबह उसे सामने देखकर मन में जो भाव थे बता नहीं सकती, आने की बिना खबर दिए अच्छा सरप्राईज दिया उसने हम सबको यहाँ आकर ! घर,परिवार,रिश्तेदार, गणेश चतुर्थी का त्यौहार इन सबके बीच काफी व्यस्त रही मै इन दिनों, न कुछ पढ़ना हुआ न कुछ लिखना हुआ नेट से दूर  … बस अपनों के बीच सबके साथ हँसते खेलते समय कैसे तेजी से बीत गया पता ही न चला ! सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना एक गृहिणी के लिए बड़ा  मुश्किल काम होता है, खैर कल ही सभी रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए है, बेटा वापिस पुणे अपने जॉब पर, आज से फिर मेरा अपना रूटीन शुरू हुआ है !

आप सबके क्या हाल चाल है ? आप भी त्यौहार के मजे ले रहे होंगे है न ? हमारे शहर में तो भगवान गणेश की पूजा अर्चना के साथ दस दिवसीय गणेशोत्सव प्रारंभ भी हो चूका है ! हर गली मुहल्लों ,सड़कों चौराहों पर विभिन्न आकार, प्रकार के गणेश प्रतिमाएं स्थापित कर भक्तगण विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर रहे है ! घर-घर में मेरी जैसी गृहिणियां गणेश जी का मनपसंद भोजन "मोदक" बना रही है ! शहर के पंडालों में मै बड़ा की तू बड़ा कहते हुए जैसे होड़ सी लगी है इन गणेश जी की प्रतिमाओं में, क्यों न हो जिस गली का जितना अधिक चंदा उतने बडे गणपति बप्पा विराजमान हुए है ! पंडालों में पूजा अर्चना और प्रसाद वितरण के बाद  बच्चे,बड़े,बूढ़े सभी झूम रहे है नाच रहे है  " oppa gangnam style "  पर, मूषक पर सवार गणपति बप्पा भी खुश हो रहे है अपने भक्तों को झुमते हुए देख कर ! कुल मिलाकर हमारा हैदराबाद शहर इन दिनों भक्ति रस में डूबा हुआ है !दस दिवसीय गणेशोत्सव बड़े धूम धाम से मनाया जायेगा हमेशा की तरह और फिर विसर्जन !

जीवन के शोक,चिंता और दुखों को भुलाकर मनुष्य अपनों के साथ बैठकर कुछ पल मुस्कुरा सके, हंस बोल सके इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर हमारे त्योहार बने होंगे ! हर त्यौहार अपने-अपने  ऐतिहासिक,सामाजिक,धार्मिक महत्व को दर्शाते है जिससे हमारी संस्कृति को समझा जा सके लेकिन आज कल हर त्योहार उसके पीछे की जो भावना रही होगी उसे विस्मृत कर सिर्फ मौज,मस्ती और दिखावे भर के रह गए है आपको क्या लगता है ?

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

"फ्रेश फिश सोल्ड हियर "

मै ये हूँ, मै वो हूँ, उसकी कार से मेरी कार महँगी और बड़ी है, उसके बंगले से मेरा बंगला बड़ा है,उसके मठ से मेरा मठ बड़ा है, उसके चेलों से मेंरे चेले अधिक है, … हम हमारे चारो ओर इसी फाल्स इगो का प्रसार प्रचार होता हुआ अक्सर देखते है ! क्या कभी किसी ने इस मै मै कहने वाले इगो को कभी देखा है ? काश हम इस इगो को समझ पाते खोज पाते,जो भीतर कही है ही नहीं, हम भी उस दुकानदार की तरह सारी तख्तियां निकाल फेंकते जो की केवल दुकाने चलाने के लिए हमारे स्वभाव पर हमने लटकाई हुई है, जिससे हमारा वास्तविक स्वभाव ढक सा गया है ! क्यों न हम उस कहानी को ही सुने जिससे मेरी बात अधिक स्पष्ट हो  ! 

एक गांव में एक आदमी ने मछलियों की एक दुकान खोली, उस गांव में यह पहली ही दुकान थी इसलिए दुकानदार ने बहुत सुन्दर तख्ती बनवाई और उसपर लिखवाया कि, "फ्रेश फिश सोल्ड हियर" अर्थात यहाँ ताजी मछलियां बेचीं जाती है ! पहले दिन पहला ग्राहक आया और उसने उस तख्ती को देखकर कहा  … "फ्रेश फिश सोल्ड हियर " ? कही बासी मछलियां भी बेचीं जाती है ? ताज़ी लिखने की क्या जरुरत है ? दुकानदार ने सोचा ग्राहक ठीक ही तो कह रहा है सो उसने "फ्रेश"शब्द तख्ती से हटा दिया अब रह गया था सिर्फ "फिश सोल्ड हियर" याने की मछलियाँ बेचीं जाती है ! फिर दुसरे दिन एक बूढी औरत आयी और उसने उस तख्ती को देखकर कहा "फिश सोल्ड हियर" ? यहाँ नहीं तो कही और भी मछलियाँ बेचते हो क्या ? उस दुकानदार ने सोचा बूढी औरत सच ही तो कह रही है "हियर" शब्द बिलकुल बेकार है सो उसने उस शब्द को हटाकर केवल तख्ती पर लिख दिया "फिश सोल्ड" ! फिर तीसरे दिन एक आदमी ने उस तख्ती को देखकर कहा "फिश सोल्ड" का क्या मतलब है भाई, मुफ्त भी देते हो क्या  ? उस दुकानदार को लगा यह आदमी भी सच कह रहा है सोल्ड शब्द भी बेकार है सो उसने उसे भी हटा दिया अब सिर्फ उस तख्ती पर रह गया "फिश" ! 

अगले दिन एक बुढा व्यक्ति आया उसने उस तख्ती को देखकर कहा  …  "फिश"? अरे भाई किसी अंधे को भी दूर से ही पता चलता है कि,दुकान में मछलियाँ है दूर से ही इनकी बास जो आ रही है फिर फिश लिखने की क्या जरुरत है ? दुकानदार को लगा यह व्यक्ति भी सही कह रहा है सच में मछलियों की गंध से ही पता चलता है फिश लिखने की कोई जरुरत नहीं है सो उसने फिश शब्द को भी निकाल दिया ! अब सिर्फ दुकान पर खाली तख्ती लटकी हुई थी !
फिर अगले दिन और एक आदमी आ गया उसने उस खाली तख्ती को देखकर कहा   "क्यों भाई व्यर्थ की खाली तख्ती लटकाई है ? इस तख्ती से दुकान पर आड़ पड रही है " और उसके बाद उस दुकानदार ने उस तख्ती को भी निकाल कर फ़ेंक दिया ! एक एक करके हर व्यर्थ चीज हटती चली गई अंत में बच गया था केवल खाली स्पेस,केवल शून्य जो की हमारा स्वभाव है लेकिन हमने न जाने इस प्रकार की कितनी ही मै,मै की तख्तियां उस स्वभाव पर लटकाई 
हुई है !