तुम माता-पिता हम सबके, तुम्ही सबके भाग्य विधाता
भिजवा देना दीवाली पर, गाडी,बंगला,एक करोड़ रुपया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया .... !
निर्धन कवियों के दुश्मन, ताऊ जी के तुम सगे चाचा !
तुम्हारे आगे पीछे दुनिया सारी, करती रोज ता - ता थैया
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया … !
चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,
चलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया … !
हर शाख-शाख पर दीखते हो,तुम ही तुम बैठे हो भैया
अब कैसे लगेगी पार हमारी,फंसी मंझधार में नैया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया … !
( मित्रों, दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ )
बहुत सुन्दर .दीपावली की शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : दीप एक : रंग अनेक
हा हा हा...आज ताऊ के चाचाजी का भी पता चल गया.:) सुंदर हास्य व्यंग रचना.
जवाब देंहटाएंदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
नर्क-चतुर्दशी का परिवार आप को मेरे मित्र सपरिवार शुभ हो !
जवाब देंहटाएं'जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, धरा अपर अँधेरा कहीं रह न जाये !'
अच्छा व्यंग्य है !
!! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
जवाब देंहटाएं!! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!
आपकी यह पोस्ट आज के (०२ नवम्बर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ये यादें......दिवाली या दिवाला ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ ।।
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RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
आपको भी दीवाली की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंताऊ के इतने चचा है ये तो नहीं पता था ... हा हा मस्त रचना है ...व्यंग की धार लिए ...
जवाब देंहटाएंदीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...
बहुत सुंदर दीपोत्सव शुभ हो !
जवाब देंहटाएंवाह सुमन जी आप का ये रंग भी बहुत भाया । जय हो उल्लू भैया की, साथ में लछमी मैया की।
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली आपको परिवार सहित।
गज़ब का व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की शुभकामनाएं।
संयोग से कई बार इसे पढने के बाद भी अलग अलग कारणों से कमेन्ट नहीं दे सका , कहीं नेट नहीं , कहीं हिंदी नहीं :(
जवाब देंहटाएंमैं तो वाही लिखूंगा !
देखो आज निठल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !
दीवाली में लल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !
आज खरींदे, सोना चांदी,धन की वारिश होनी है !
अपने अपने उल्लू ले , महिलायें बाहर निकलीं हैं !
पूंछ हिलाते देख इन्ही को, कुत्ते बस्ती छोड़ गए !
कैसे कैसे पिल्लू ले , महिलायें बाहर निकली हैं !
कितने लोग आज भी ऐसे , जो बंधने को बैठे हैं !
बड़े मनोहर पल्लू ले, महिलायें बाहर निकली हैं !
जीवन इनका,ताश के पत्ते बिना दिखाए बीता है
गोरे रंग का कल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !
चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,
जवाब देंहटाएंचलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया … !
सुन्दर व्यंग्य
सादर मंगलकामनाएँ !