शनिवार, 2 नवंबर 2013

तुम्हारी जय हो उल्लू भैया, जयजय कार उल्लू भैया !

तुम माता-पिता हम सबके, तुम्ही सबके भाग्य विधाता 
भिजवा देना दीवाली पर, गाडी,बंगला,एक करोड़ रुपया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  .... !


निर्धन कवियों के दुश्मन, ताऊ जी के तुम सगे चाचा !
तुम्हारे आगे पीछे दुनिया सारी, करती रोज ता - ता थैया 
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,   
चलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


हर शाख-शाख पर दीखते हो,तुम ही तुम बैठे हो भैया 
अब कैसे लगेगी पार हमारी,फंसी मंझधार में नैया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


( मित्रों, दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ )

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर .दीपावली की शुभकामनाएँ !
    नई पोस्ट : दीप एक : रंग अनेक

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  2. हा हा हा...आज ताऊ के चाचाजी का भी पता चल गया.:) सुंदर हास्य व्यंग रचना.

    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. नर्क-चतुर्दशी का परिवार आप को मेरे मित्र सपरिवार शुभ हो !
    'जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, धरा अपर अँधेरा कहीं रह न जाये !'
    अच्छा व्यंग्य है !

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  4. !! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
    !! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
    दीपोत्सव की शुभकामनायें !!

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  5. आपकी यह पोस्ट आज के (०२ नवम्बर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ये यादें......दिवाली या दिवाला ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  6. सुंदर प्रस्तुति ,,,
    दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ ।।
    ==================================
    RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना

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  7. ताऊ के इतने चचा है ये तो नहीं पता था ... हा हा मस्त रचना है ...व्यंग की धार लिए ...
    दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  8. वाह सुमन जी आप का ये रंग भी बहुत भाया । जय हो उल्लू भैया की, साथ में लछमी मैया की।
    शुभ दीपावली आपको परिवार सहित।

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  9. गज़ब का व्यंग्य है।
    दीपोत्सव की शुभकामनाएं।

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  10. संयोग से कई बार इसे पढने के बाद भी अलग अलग कारणों से कमेन्ट नहीं दे सका , कहीं नेट नहीं , कहीं हिंदी नहीं :(
    मैं तो वाही लिखूंगा !

    देखो आज निठल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !
    दीवाली में लल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !

    आज खरींदे, सोना चांदी,धन की वारिश होनी है !
    अपने अपने उल्लू ले , महिलायें बाहर निकलीं हैं !

    पूंछ हिलाते देख इन्ही को, कुत्ते बस्ती छोड़ गए !
    कैसे कैसे पिल्लू ले , महिलायें बाहर निकली हैं !

    कितने लोग आज भी ऐसे , जो बंधने को बैठे हैं !
    बड़े मनोहर पल्लू ले, महिलायें बाहर निकली हैं !

    जीवन इनका,ताश के पत्ते बिना दिखाए बीता है
    गोरे रंग का कल्लू ले,महिलायें बाहर निकली हैं !

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  11. चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,
    चलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
    तुम्हारी जय हो उल्लू भैया … !

    सुन्दर व्यंग्य
    सादर मंगलकामनाएँ !

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