भोजन ,
तन की जरुरत है
रोटी ,कपड़ा ,मकान
मनुष्य की प्राथमिक
आवशकतायें है
याने की , भूख
जीवन का सबसे
बड़ा सच है !
लेकिन,
मन रूपी परिंदे को
चाहिए चांद -तारे
इस सच से परे
सौंदर्य ,सपने ,
संगीत , काव्य
इसे मन की
भूख कहे अथवा
मन का विलास !
जब मन
जीवन की संकुचित
परिधि पर घूमकर
कुंठित अनुभव
करने लगता है ,
सच की खुरदुरी
जमीन जब कठोर
लगने लगती है ,
तब वह गढ़ने
लगता है अपना
एक नया आकाश
जिसको नाम देता है
प्रेम ,जहाँ वो अपने
जिसको नाम देता है
प्रेम ,जहाँ वो अपने
कल्पना के सुंदर
पंख फैलाकर स्वैर
उड़ सके … !!
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जवाब देंहटाएंकवि मन की भूख तो इसी से तृप्त होती है. अब ये वैज्ञानिक लोग चाँद से पत्थर उठा-उठा के ला रहे हैं धरती पर. और तारों के पीछे भी पड़े हैं. ना जाने भविष्य के कवियों का क्या होगा :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : फिर वो दिन
सुलझी हुई कविता-
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया
रोटी कपड़ा घर बने, मूल जरुरत सत्य |
इनमे ही उलझा मनुज, मूलभूत ये कथ्य -
लेकिन संगीत साहित्य कला-का भी अपना महत्व है-
कहाँ उड़ रहा है मन ?
जवाब देंहटाएंदिग्भ्रमित सा !
परत में भरपूर भोजन हो तो मन भी उड़ता है ... कुंठित भी होता है ... मस्त भी होता है ...
जवाब देंहटाएंसब कुछ पेट से ही तो है ...
प्रेम ,जहाँ वो अपने
जवाब देंहटाएंकल्पना के सुंदर
पंख फैलाकर स्वैर
उड़ सके … !!
.......प्रशंसनीय . बधाई
भूख मिटे तो मन का नंबर लग ही जाता है. मन के पार बेमन है. वैसे रास्ता मन से होकर ही जाता है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कोई सहारा तो चाहिए जीने के लिए......काल्पनिक ही सही .....सुन्दर विश्लेषण !!!
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