रात भर
हुई वर्षा
बारिश में
पेड़-पौधे
भीगे
पंछियों के
पंख भीगे
नीड़ में,
चारो ओर
बारिश के
नैसर्गिक आनंद में
हुलसे मानव,
वन-उपवन !
मत झिझक
तू भी हठी
शिकायती मन
रिक्त न रह
भर भावों की
गागर
भाव सरिता में
तू भी उन्मुक्त
भीग !
वाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सुमन जी....
काश हमारा मन भी निश्छल होता पंछियों की तरह.
सादर
अनु
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंछोटे छोटे शब्द
पर गंभीर अर्थ लिए हुए
भाव सरिता में
जवाब देंहटाएंतू भी उन्मुक्त
भीग !...........
सुन्दर रचना
भाव विभोर हो गई
काफी सुंदर रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंवाह .... मन तू भी भीग .... और बना रह सरस ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवर्षा का मौसम और ये कविता भई वाह .अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ..
जवाब देंहटाएंआपकी इस भाव सरिता की लहरों से मन के स्वर मुखरित हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए .. भाव सरिता बह रही है वषा की बूँदें मन तन सब गीला कर रही हैं ...
जवाब देंहटाएंछोटे सार्थक शब्दों में लिखी बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
भावों के कारण ही तुलना है। तुलना के कारण ही श्रेष्ठता और हीनता का बोध है। यह बोध ही जड़ है संबंधों में कड़वाहट की। मानव जीवन इसके लिए तो नहीं है। मन रिक्त ही रहे,तो बात बने।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको. सादर वन्दे
जवाब देंहटाएंhttp://madan-saxena.blogspot.in/
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नैसर्गिक आनंद में
जवाब देंहटाएंहुलसे मानव,
वन-उपवन !
मत झिझक
तू भी हठी
शिकायती मन
रिक्त न रह
भर भावों की
गागर
भाव सरिता में
तू भी उन्मुक्त
भीग !
bahut sundar bhav, badhai.
वर्षा के नैसर्गिक आनन्द में भीगी हुई रचना.....!
जवाब देंहटाएंगीले मौसम के साथ मन की ऋतु भी बदल जाती है. बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR...
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