गुरुवार, 19 जनवरी 2012

मन के किनारे .....


बहुत बार ऐसा होता है कि, नकारात्मक विचारों से भरा हमारा यह मन अक्सर जीवन में थोड़ी देर के लिये ही सही पर, काफी उथल-पुथल मचा देता है ! इससे मन तो विक्षुब्ध होता ही है इससे जीवन भी खासा प्रभावित होता  है !  ऐसे में मुझे यह कहानी बड़ी प्यारी लगती है !
बुद्ध जब वृद्ध हो गए थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष के निचे विश्राम करने रुक गए थे ! उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने  बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे  तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था ! 
 
हमारी चेतना रूपी झरने पर इसी प्रकार नकारात्मक विचारों क़ी गाड़ियां जब भी गुजरती है ! घबराने की या फिर किसी को दोष देने की जरुरत नहीं है ! बस थोड़ी देर धीरज और शांति के साथ मन के किनारे बैठने की जरुरत है !  नकारात्मक विचारों की कीचड़ अपने आप निचे बैठ जाती है! कभी यह प्रयोग कर के देखिये आप पायेंगे कि, मन अपने पूर्ववत स्वभाव में आ गया है ! मन से लड़ना नहीं सिर्फ मन के किनारे बैठकर थोड़ी देर प्रतीक्षा करना ! बिना प्रतिक्रिया के मन फिर से नया ताजा हो जाता है!

15 टिप्‍पणियां:

  1. सहमत हूँ ...
    कई बार जब मन बहुत असंतुलित हो कुछ देर शांत रहने पर सब कुछ ठीक हो जाता है ...
    शुभकामनायें आपको !

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  2. बिलकुल सही लिखा है आपने ,कई बार मैंने भी ऐसा महसूस किया है ....

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  3. मन है विचारों का जमावड़ा। उसके स्वागत से ही मन विचार मुक्त हो पाता है। और जैसे ही विचार-मुक्त हुए,एक दूसरी दुनिया में प्रवेश हो जाता है जो हमारी ही थी मगर हम अनजान थे उससे अब तक!

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  4. सही कहा आपने ..... कुछ समय की उथलपुथल फिर शांति.....

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  5. बहुत बहुत सुन्दर...
    दिल को छू गयी कथा..

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  6. बिलकुल सही लिखा ..बहुत सुन्दर...

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  8. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  9. सुरभित सुमन की सुरभि बहुत मनमोहक लगी,सुमन जी.
    इसीलिए तो ध्यान की प्रक्रिया में अपने 'सत्-चित-आनन्द'
    स्वरुप पर ही ध्यान स्थिर करने की कोशिश की जाती है,
    साक्षी होना एक सुन्दर साधना है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  10. बस थोड़ी देर धीरज और शांति के साथ मन के किनारे बैठने की जरुरत है ! नकारात्मक विचारों की कीचड़ अपने आप निचे बैठ जाती है!shi bat.

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