बुधवार, 2 नवंबर 2016

बह गया कवि ...

तम की विकट
निशा बीती !
सुहानी भोर में
सूरज की सुनहरी
धुप निकली !
अहम पिघला
गर्माहट से,
भावों की बाढ़
आ गई !
बाढ़ में,
बह गया कवि !
हाथ में धरी
चाय की प्याली
रह गई
धरी की धरी ... !

3 टिप्‍पणियां:

  1. कवी कहाँ बहता है ... उसकी सोच कहीं नहीं बहती ... कमजोर हो जाती है पर कुंद नहीं होती ... गहरा चिंतन ...

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  2. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आई, और एक नई कविता से भेट हुई। कवि का भावों में डूबना तो स्वाभाविक है। तभी तो जन्म होता है कविता का।

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