कुछ दिनों से देख रहीं हूँ
पेड़ की सुखी टहनियों से
टूटकर निर्लिप्त से,
पेड़ की सुखी टहनियों से
टूटकर निर्लिप्त से,
नीम के ये पीले पत्ते
हवाओं की सरसराती ताल पर,
नाचते,थिरकते, आनंद मग्न,
उत्सव से भरे मेरे आंगन में
झर रहे है !
मानों कह रहे है ...
जिस धरती से हमने जन्म लिया
वापिस उसी धरती की गोद में,
विश्राम करने जा रहे है
हम मर नहीं रहे है !
मुझे लगा क्या पता
मृत्यु की कला सीखा रहे है !
नीम के ये पीले पत्ते .. !
हवाओं की सरसराती ताल पर,
नाचते,थिरकते, आनंद मग्न,
उत्सव से भरे मेरे आंगन में
झर रहे है !
मानों कह रहे है ...
जिस धरती से हमने जन्म लिया
वापिस उसी धरती की गोद में,
विश्राम करने जा रहे है
हम मर नहीं रहे है !
मुझे लगा क्या पता
मृत्यु की कला सीखा रहे है !
नीम के ये पीले पत्ते .. !
यही जीवन का अंत है .बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंजीवन का यथार्थ , भोगना सबको है , चाहे जड़ हो या चेतन ! मंगलकामनाएं ....
जवाब देंहटाएं" गागर में सागर".... अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंhttp://safaltasutra.com/
मृत्यु की कला सिखाते ये झरते नीम के पत्ते। वाह सुमनजी, अनोखी कल्पना।
जवाब देंहटाएंमृत्यु की कला सिखाते ये झरते नीम के पत्ते। वाह सुमनजी, अनोखी कल्पना।
जवाब देंहटाएंजितन भी जीवन जीते हैं आनंद से जीते हैं ... शायद यही बहुत है उनके लिए ...किसी को प्रेरित क्र जाते हैं किसी को अवसाद से भर जाते हैं ... सुन्दर कल्पना को शब्द दिए हैं आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंझड़ते पतों से जीवन का सच बहुत ही सरल शब्दों में ब्यान हुआ है। बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसम्पूर्ण जीवन चक्र
जवाब देंहटाएंसच तो यही है की मृत्यु की ही कला सिखाते हैं ... दार्शनिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में ब्यान हुआ है।
जवाब देंहटाएं