मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

आम को खास होने की क्या जरुरत थी ?

कमल प्रतियोगिता 
नहीं करता गुलाब से 
गुलाब जैसा होने की 
गुलाब फ़िक्र नहीं करता 
कमल जैसा होने की 
क्या जूही क्या चमेली 
नीम की कड़वाहट में 
औषधीय गुण देख कर 
मुग्ध होती है कचनार 
की कलि, 
आम अपने खट्टे मीठे 
सहज स्वाभाविक गुण में 
कितना लोकप्रिय था 
उसे खास होने की 
क्या जरुरत थी ??
खास होने के चक्कर में 
उसने अपनी सहज 
स्वाभाविकता खो दी  … !

13 टिप्‍पणियां:

  1. आम आम है होता नहीं है
    खास आम और आम खास
    जरूर होता है हमेशा से :)

    बहुत सुंदर !

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  2. जीवन कि एक बहोत सुन्दर सीख ...जो हम सब भूल चुके हैं ...कितनी सहजता से कह दी...वाह ..!!!

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  3. बहुत ही अर्थपूर्ण ...
    जो जैसा है उसे वैसा ही रहन चाहिए ... पर आम भी तो यही चाहता है .. वो तो इंसान है जो उसे बदलना चाहता है ... अपने स्वाद के लिए ...

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  4. गीता में श्रीकृष्ण ने इसे ही स्वधर्म की संज्ञा दी है. हमारे चारो ओर ऐसे कितने ही कमल हैं जिन्हें गुलाब होना था या कई गुलाब जो कमल होने की क्षमता रखते थे! समाजशास्त्र में एक टर्म इस्तेमाल होता है - रेफरेंस ग्रुप. सारा खेल इसी का है. यह व्यक्ति विशेष के लिये उसका अपना समूह न होकर वह समूह होता है जिसकी वह महत्वाकांक्षा रखता है... यही प्रक्रिया किसी को भी अपना स्वधर्म त्याग "आम" से "खास" बनने के पथ पर ले जाता है. परिणाम देखना बाकी है!! :)
    आपने बिल्कुल सही, सटीक और सामयिक कटाक्ष किया है!!

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    1. बखूबी रचना के मर्म को पकड़ा है :)
      बहुत बहुत आभार सार्थक टिप्पणी के लिए !

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  5. एक सीख दे गयी रचना .... बेहतरीन लिखा है

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  6. सहजता में ही स्वाभाविकता होती है .....सहज ही सुंदर होता है ...इस सार्थक रचना के लिए
    धन्यवाद सुमनजी.....

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  7. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरेया-

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  8. आम से ख़ास होने पर सहजता और स्वाभाविकता को बरकरार बनाए रखना पड़ेगा...!
    बहुत खूब,सुंदर रचना...!

    RECENT POST - फागुन की शाम.

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  9. उत्तर
    1. सृष्टा और सृजन का
      अनवरत खेल चलाता
      धरती के कागज पर
      असंख्यक रचनाएं
      बार-बार रचता
      बार-बार मिटाता है
      तब जाके कोई एक
      उसके सुघड़ सांचे में
      ढालता है क्योंकि,
      ईश्वर को साधारण प्रिय है
      बार-बार रचता क्यों वरना ??

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  10. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !

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