बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

कही विद्रोह न कर दे नारी ….

मत पसारे हाथ अपने 
किसी के भी सामने 
दया के लिए वह 
चाहती हूँ  आज 
हर घर -घर में 
नारी सक्षम 
होनी ही चाहिए  
तभी ,
सही मायने में 
नवरात्रि  का उत्सव 
शक्ति की पूजा 
सार्थक कहलाएगी  !
लेकिन गाँव,कस्बों में 
आज भी 
विद्या से वंचित है 
सरस्वती 
पैसे -पैसे के लिए 
मोहताज है
 लक्ष्मी 
दुर्बल कितनी ही 
है  गौरी , दुर्गा 
सबके खाने पर 
बचा खुचा खाती है 
अन्नपूर्णा  आज भी ,
जानती हूँ उनका डर 
पढ़, लिखकर 
आत्मनिर्भर बन कर 
उनके नियमों के खिलाफ 
कही विद्रोह 
न कर दे  नारी   … 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत रचना है , नवदुर्गा पूजन पर समाज पर एक बढ़िया चोट की है , आभार ओर बधाई आपको !

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11-10-2013) को " चिट़ठी मेरे नाम की (चर्चा -1395)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
    नवरात्रि और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें ओर बधाई.

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  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-
    नवरात्रि / विजय दशमी की शुभकामनायें-
    (१५ दिन की छुट्टी पर हूँ-सादर )

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  4. नारी की शक्ति कौन नहीं जानता......
    बहुत ही सार्थक रचना है दी....
    सादर
    अनु

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  5. बहुत सटीक लिखा, यथार्थ में कुछ करना होगा. हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. सच्चाई लिख दी है आपने. पिछले बरस गाँव गया था तो देखा कि कुछ भी बदला नहीं इतने सालों में.

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  7. मन के उदद्गार कब क्रियान्वित होंगे नहीं पता ... यथार्थ कहती रचना

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  8. आज के समाज पर सार्थक और सटीक बेहद खूबसूरत रचना रचना , बधाई आपको !
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  9. सामयि‍क रचना...नारी अब बने दुर्गा

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  10. बहुत सटीक प्रस्तुति |

    मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

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  11. पढ़, लिखकर
    आत्मनिर्भर बन कर
    उनके नियमों के खिलाफ
    कही विद्रोह
    न कर दे नारी ---------


    नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना
    सादर

    आग्रह है-
    पीड़ाओं का आग्रह---

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  12. अब तो नारी को ये विद्रोह करना ही होगा ... वर्ना अती बडती जाएगी ..
    दशहरा की मंगल कामनाएं ...

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