ओ चाँद ,
चमक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आओ
हम भी महक
लेंगे जरा …
रूप अपरूप
निहार लेंगे
जी भर कर
शीतल तुम्हारा
तुम भी निहार लो
हमें जरा …
प्यार और पूजा के
बीच का भाव स्वीकारो
बादलों में क्यों
छुप गए हो आज
स्याह बादल हटाओ
तो जरा …
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जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत बढियां मस्त अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंमगर यह चाँद गया कहाँ ??
कहाँ जायेगा अपनी चांदनी को छोड़कर ? कभी कभी खास कर करावा चौथ के दिन चांदनी के साथ आंखमिचौली खेलता रहता है, इसलिए काले बादलों के पीछे छिप जाया करता है
हटाएंबेचारे का यही एक दिन तो खास होता है :)
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हटाएंनखरे चाँद के ...
हटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंप्यार और पूजा के
जवाब देंहटाएंबीच का भाव स्वीकारो
बादलों में क्यों
छुप गए हो आज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
bahut sundar rachna hai..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi aap sabhi ka swagat hai..
ek baar jarur padharen..
http://iwillrocknow.blogspot.in/
बहुत खुबसुरत अभिव्यक्ति -बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मैं
बहुत सुंदर पंक्तियाँ .....
जवाब देंहटाएंआसमां का चाँद भी आज नटखट हो जाता है ... छुपान छुपाई का खेल खेलता है ...
जवाब देंहटाएंये भी तो प्रेम का एहसास ही है ...
“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,मनभावन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखुद को छुपाने से हमसे भी बहुत साड़ी चीजे छुपी रह जाती है
चाँद को भी यह बदरी हटा बाहर आना चाहिए
सादर !
बहुत सुंदर ,और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ के दिन चांद के लिये आपके द्वारा लिखे गये अल्फ़ाल ही अक्सर सूझते हैं, बहुत ही सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंरामराम.