गुरुवार, 28 जून 2012

उपदेशक ......


विश्व भर में प्रति वर्ष २७ जून "नशीले पदार्थ के दुरूपयोग तथा अवैध व्यापार के विरुद्ध अंतराष्ट्रीय दिवस" के रूप में मनाया जाता है ! नशीले पदार्थ से मुक्त साफ, स्वच्छ समाज हम सब चाहते है लेकिन चारो ओर बुराई ही बुराई के रहते क्या ये संभव है ? बिलकुल नहीं .... यदि वास्तव में सारा समाज अच्छा हो जाये तो, वे अच्छे लोग बहुत मुश्किल में पड जायेंगे जिनकी दुकाने इन बुराइयों की बदौलत चलती है ! 
कहते है ना हर बुराई अच्छाइयों के पैरों से चलती है ! आपने बहुत बार अख़बार पढ़ते हुये गौर किया होगा "कल महावीर जयंती के उपलक्ष में शहर में शराब की दुकाने बंद रहेंगी " इसका क्या मतलब हुआ ? कल बंद रहेंगी याने की आज ही जिनको खरीदना हो खरीद लो ! नशा नशा है वैध क्या अवैध क्या ? आज इस कारोबार की वजह से ही सरकार को करोडो, अरबों  की इनकम होती है ! आज सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी इससे प्रभावित है यह एक हम सबके लिये चिंता का विषय है ! उपदेश देने वाले दे रहे है, उनकी भी दुकानों का सवाल है क्या करे ! कल खलील जिब्रान की एक कहानी पढ़ रही थी मुझे तो बड़ी प्यारी लगी !

एक बड़े शहर में, एक उपदेशक कुत्ता था जो उपदेशक और मिशनरी था ! दुसरे कुत्तों को हमेशा यह कहकर उपदेश देता क़ि, भौंकना बंद करो ! हमारी करीब करीब निन्यानव प्रतिशत उर्जा भौंकने में गवां देते है ! इसलिए हम विकसित नहीं हो रहे है इसलिए बेकार का भौंकना बंद करो ! लेकिन कुत्तोंको भौंकना बंद करना बेहद कठिन था वस्तुत: वे तभी सुख अनुभव करते है जब वे भौंकते है ! फिर भी वे अपनी नेता की बात को सुनते, उस क्रांतिकारी की जो देवताओं के राज्य के बारे में सोच रहा था, जो कही भविष्य में आने वाला है, जहाँ हर कुत्ता सुधर चुका होगा ! और धार्मिक बन गया होगा ! न लड़ाई होगी न झगडा होगा बस चारो ओर केवल शांति ही शांति होगी ! लेकिन कुत्तों ने सुनी उसकी बात पर बोले जो कुछ तुम कहते हो सच है लेकिन हम निसहाय्य है ! हम इतने बड़ी बातों को नहीं समझते ! तो सारे कुत्ते खुद को अपराधी भी समझते और भौंकना बंद भी नहीं कर पाते ! जब भी कोई वर्दिधारी दिखाई देता भौंकने लग जाते क्यिंकि वर्दियों के खिलाफ थे वे ! लेकिन एक दिन पांसा उल्टा पड गया ! एक अँधेरी रात कुत्तों ने निर्णय लिया क़ि, "यह हमारा नेता हमेशा हमें बदलने क़ी कोशीश में रहा है, और हमने उसकी बात कभी नहीं सुनी ! कमसे कम आज उसके जन्मदिन के अवसर पर कोई नहीं भौकेगा ! कितानाही कठिन क्यों न हो आज हम सब चुप रहेंगे ! और उस रात उनमेसे एक भी कुत्ता नहीं भौका ! वह उपदेशक नेता देखने गया,इस कोने से उस  कोने,इस गली से उस गली तक पर कोई आवाज नहीं आ रही थी ! वह आधी रात तक इंतजार करता रहा किसी एक के भौकने का लेकिन इतनी कठिन हो गई बात क़ि, वह एक अँधेरे कोने में सरक गया और भौकने लगा ! जब दुसरे कुत्तों ने सुना क़ि कोई शांति भंग कर चूका है, वे बोले "अब कोई समस्या नहीं रही " वे जानते नहीं थे क़ि नेता ने ही ऐसा किया है ! उन्होंने सोचा उनमेसे ही किसी ने लिया हुआ वचन तोडा है, अब सबके लिये रोक पाना कठिन था तो सब के सब कुत्ते भौंकने लगे ! सारे शहर में भौंकने क़ी आवाज गूंजने लगी ! वह नेता बाहर आया और सबको उपदेश देना शुरू कर दिया

सोमवार, 18 जून 2012

पतंजलि योग - सूत्र ( पुस्तक परिचय )


योग पहले कभी इतना प्रचलित नहीं था जितना की आज कल हो रहा है ! योग व्यापार की तरह फल फूल रहा है ! हर गली मुहल्ले में योगा सेंटर खुले हुये है  ! अनेक टी. वी. चैनलों पर विभिन्न आसनों द्वारा योग सिखाते योग गुरुओं को हम देख सकते है ! बच्चों से लेकर बड़ों तक योग के प्रति आकर्षण, उत्सुकता  डॉक्टर्स भी मरीज को दवाई की पर्ची के साथ योग के महत्व को समझाकर उसे करने की सलाह देने लगे है!  मकसद सबका एक ही है स्वाथ्य लाभ ! यह एक अच्छी बात है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ! लेकिन पतंजलि योग का वास्तविक प्रयोजन क्या रहा होगा ? आइये जानते है ! योग गुरु या तो पतंजलि योग के बारे में कम जानते है या फिर साधकों को बताना उचित नहीं सझते ! क्या पता यह एक व्यपार का ही हिस्सा हो शायद ! यह मेरा अपना दृष्टिकोण है, हर साधक की योग्यता अलग -अलग होती है ! इस योग्यता को ध्यान में रखकर पतंजलि योग का उद्देश उसकी उपयोगिता भी बता देते तो, साधक आगे भी गती कर सकता है ! जैसा की बहुतों का मानना है कि, योग व्यायाम या कसरत क़ी तरह है लेकिन मैंने जब इस पुस्तक को पढ़ा तब पता चला क़ी योग केवल इतना ही नहीं है! योग हमारे समग्र अस्तित्व से,हमारी जड़ों से जुडा है ! योग जीवन रूपांतरण के परम नियमों को जानने का विज्ञान है ! पतंजलि योग का वास्तविक महत्व जब तक साधक को समझाया नहीं जाता कितने ही योगासन करो साधक अपने स्वयं से परिचित नहीं हो सकता, जिसकी चर्चा पतंजलि अपने योग सूत्रों में करते है ! पतंजलि योग के वैज्ञानिक है बुद्ध पुरुषों क़ी दुनिया में आइन्स्टीन क़ी तरह ! उन्होंने मनुष्य के अंतस जगत के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्य और मानवीय मानस क़ी चरम कार्य प्रणाली के विस्तार का अन्वेषण और प्रतिपादन किया है ! जैसे विज्ञान कहता है प्रयोग करो वैसे ही योग कहता है अनुभव को जानो ! प्रयोग है भौतिक जगत को जानना, योग है हमारे आंतरिक जगत को जानना अनुभव द्वारा ! योग है जीवन रूपांतरण के गहरे नियमों को जानने का विज्ञान !

कुछ वर्ष पूर्व योग पर कुछ अच्छी सामग्री तलाश कर रही थी ! यहाँ "मेवलाना" में ओशो क़ी पुस्तक प्रदर्शिनी थी ! उस प्रदर्शिनी में एक पुस्तक ने  मुझे आकर्शित किया "पतंजलि  योग-सूत्र " ! इस पुस्तक में पतंजलि योग सूत्रों पर ओशो के बीस प्रवचन उपलब्ध है ! ओशो इन सूत्रों क़ी व्याख्या करते हुये कहते है ......."सूत्रों का अनुवाद करना लगभग असंभव है अत; मै अनुवाद क़ी अपेक्षा व्याख्या करुंगा" तुम्हे अनुभूति देने के लिये, क्योंकि शब्द तुम्हे भटका देंगे ! ओशो द्वारा इन व्याख्याओं को पढ़ते हुये बहुत बार मुझे यही अनुभूति हुई कि, स्वयं पतंजलि ही ओशो के कंठ से बोल रहे है ! पतंजलि योग-सूत्र पुस्तक को पढना सबके लिये उपयोगी है खासकर उन योग साधकों के लिये जिनका जीवन के प्रति मोहभंग हुआ है ! या फिर वे ऐसे योग साधक है, जो प्रयोग के साथ-साथ एक अन्वेषक भी है जो इन योग सूत्रों की गहराइयों में उतरने का साहस भी रखते है !

सोमवार, 11 जून 2012

छा गये बादल

 धरती को जब अपने प्रियतम के विरह में गलते, पिघलते देख आकाश को भी अपनी नीलाभ अलिप्तता छोड़कर प्यार से बरसना पड़ता है! प्रीत की रीत यही है शायद!


यूँ तो कुछ दिनों से शाम होते ही आकाश बादलों से घिर रहा था लेकिन बारिश हुई कल !  इस मौसम की पहली बरसात हुई ! ठंडी ठंडी हवाओं ने रिमझिम रिमझिम फुहारों ने जैसे कह दिया है कि भीषण गर्मी के दिन अब अलविदा होने को है! 


घिर-घिर कर 
आ गए बादल 
नील गगन में 
काले-काले 
छा गए बादल !
सर्द हुए हवा के झोंके 
कड़ाकड़ नभ में 
बिजली चमके 
तप्त धरा की 
प्यास बुझाकर 
नदियों में जल भरने 
आ गए बादल 
छा गए बादल !
वन उपवन में अब 
होगी हरियाली 
शुक, पीकी मैनायें 
नाच उठेंगी 
खेत-खलिहानों में 
खुशहाली होगी 
गाँव-गाँव शहर 
आमृत जल बरसाने 
आ गए बादल 
छा गए बादल !
हरष हरष कर वर्षा 
कुछ ऐसे बरसी 
चातक मन तृप्त हुआ 
बूँद स्वाति की 
मोती बनी 
मन के आंगन में
छमाछम छम-छम 
बूंदों के नुपूर 
खनका गए बादल 
बरस गए बादल ! 

शुक्रवार, 1 जून 2012

पहाड़ी लड़की ..... [ पहाड़ी लोक कथा ]


वह अत्यंत रूपवती पहाड़ी लड़की है  विलियम वर्डसवर्थ की लूसी जैसी ... पहाड़ों, झरनों की आगोश में पली-बढ़ी, जिसके रोएं-रोएं में, बसा हुआ है हिमालय का सौन्दर्य और उसकी शीतलता! किन्तु गरीब और लाचार पिता ने उसे ब्याह दिया मैदानों में, जहाँ दूर-दूर तक जंगलों, पहाड़ों का नामों निशान तक नहीं है! जैसे-तैसे वर्षा और सर्दी के दिन  कट जाते है अपने प्रियतम की स्नेहभरी छाया में, पर सूरज की तपती गरमी के दिन काटे न कटते! ना वह ठीक से सो सकती है, ना ही ससुराल में आराम से रह पाती है !  हर पल मायके की याद सताने लगी थी उसे... वो पहाड़ों, वो झरनों की यादे, जो पीछे छोड़ आई थी ! आखीर एक दिन उसने अपने सास से विनम्र प्रार्थना की मायके  जाने की !  जब सास ने इनकार कर दिया तो, फिर तो वह धूप में मुरझाये गुलाब की तरह कुम्हलाने लगी! खाना-पीना छूट गया! सारा शृंगार तक छुट गया था उसका ! आखीर सास ने कहा ठीक है कल चली जाना ! वह बहुत खुश हुई ख़ुशी-ख़ुशी मायके जाने की तैय्यारी में लग गई ........अपना सारा सामान  संवारकर प्रियतम से अंतिम विदाई लेकर, सास से पूछा ...जुहो? (जाऊं?) सास ने कहा ....भोल जाला  (कल जाना)  और वह हर रोज  सुबह अपना सामान संवारती, प्रियतम से विदा लेती फिर सास से पूछती ...जुहो?  सास फिर से कहती भोल जाला ! कल जाना ..भीषण गरमी के मारे उसको एकेक पल काटना अब मुश्किल होने लगा था ! और एक दिन अचानक तपती गरमी तप-तप करने लगी, धरती धूप की वजह से चटकने लगी! पेड़ पर बैठे पंछी तक लू खाकर निचे गिरने लगे !  गरमी के मारे उसका कंठ सूखने लगा था  सूखे कंठ से अंतिम बार उसने पूछा ...जुहो ?  सास ने फिर कहा ....भोल जाला ! पहाड़ी लड़की कुछ न बोली फिर, शाम एक वृक्ष के निचे प्राणविहीन मृत पाई गई ......मारे गरमी के उसका सारा शरीर काला पड गया था ! और कहते है की, तब से आज तक उन हिमालय की घाटियों में गूंजती है एक चिड़िया की अस्पष्ट-सी आवाज जुहो? ........ जुहो? बदले में उभरता है उन घाटियों में एक कर्णकर्कश पक्षी का स्वर भोल जाला !  और फिर अचानक वह चिड़िया चुप-सी हो जाती है और अपने नन्हे पंख फैलाकर उड़ जाती है उन हिमाच्छादित हिमशिखरों की ओर ...........      और देर तक उन हिमालय की घाटियों में उसकी दर्दभरी  आवाज गूंजती है  जुहो? .....   जुहो?

दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है ! आजकल ऐसी जालिम सास का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है और आज्ञाकारी बहु का भी,यह कहानी इसलिए बड़ी प्यारी लगी मुझे कि , सिर्फ यह एक मात्र कहानी नहीं प्रतीकात्मक कहानी है ! ससुराल प्रतीक है परतंत्रता, रिश्तों का बंधन ! मायका प्रतीक है स्वतंत्रता का शीतलता शांति का ! सास प्रतीक है नेगेटिव एनर्जी ! नकारात्मक उर्जा अक्सर सकारात्मक उर्जा पर हावी होना चाहती है ! हर मनुष्य के प्राणों में एक प्यास है पूकार है  अपने अस्तित्व के खोज क़ी लेकिन हर बार नकारात्मक उर्जा उसे रोक देती है ! बिलकुल उस पहाड़ी लड़की के सास क़ी तरह !