वह अत्यंत रूपवती पहाड़ी लड़की है विलियम वर्डसवर्थ की लूसी जैसी ... पहाड़ों, झरनों की आगोश में पली-बढ़ी, जिसके रोएं-रोएं में, बसा हुआ है हिमालय का सौन्दर्य और उसकी शीतलता! किन्तु गरीब और लाचार पिता ने उसे ब्याह दिया मैदानों में, जहाँ दूर-दूर तक जंगलों, पहाड़ों का नामों निशान तक नहीं है! जैसे-तैसे वर्षा और सर्दी के दिन कट जाते है अपने प्रियतम की स्नेहभरी छाया में, पर सूरज की तपती गरमी के दिन काटे न कटते! ना वह ठीक से सो सकती है, ना ही ससुराल में आराम से रह पाती है ! हर पल मायके की याद सताने लगी थी उसे... वो पहाड़ों, वो झरनों की यादे, जो पीछे छोड़ आई थी ! आखीर एक दिन उसने अपने सास से विनम्र प्रार्थना की मायके जाने की ! जब सास ने इनकार कर दिया तो, फिर तो वह धूप में मुरझाये गुलाब की तरह कुम्हलाने लगी! खाना-पीना छूट गया! सारा शृंगार तक छुट गया था उसका ! आखीर सास ने कहा ठीक है कल चली जाना ! वह बहुत खुश हुई ख़ुशी-ख़ुशी मायके जाने की तैय्यारी में लग गई ........अपना सारा सामान संवारकर प्रियतम से अंतिम विदाई लेकर, सास से पूछा ...जुहो? (जाऊं?) सास ने कहा ....भोल जाला (कल जाना) और वह हर रोज सुबह अपना सामान संवारती, प्रियतम से विदा लेती फिर सास से पूछती ...जुहो? सास फिर से कहती भोल जाला ! कल जाना ..भीषण गरमी के मारे उसको एकेक पल काटना अब मुश्किल होने लगा था ! और एक दिन अचानक तपती गरमी तप-तप करने लगी, धरती धूप की वजह से चटकने लगी! पेड़ पर बैठे पंछी तक लू खाकर निचे गिरने लगे ! गरमी के मारे उसका कंठ सूखने लगा था सूखे कंठ से अंतिम बार उसने पूछा ...जुहो ? सास ने फिर कहा ....भोल जाला ! पहाड़ी लड़की कुछ न बोली फिर, शाम एक वृक्ष के निचे प्राणविहीन मृत पाई गई ......मारे गरमी के उसका सारा शरीर काला पड गया था ! और कहते है की, तब से आज तक उन हिमालय की घाटियों में गूंजती है एक चिड़िया की अस्पष्ट-सी आवाज जुहो? ........ जुहो? बदले में उभरता है उन घाटियों में एक कर्णकर्कश पक्षी का स्वर भोल जाला ! और फिर अचानक वह चिड़िया चुप-सी हो जाती है और अपने नन्हे पंख फैलाकर उड़ जाती है उन हिमाच्छादित हिमशिखरों की ओर ........... और देर तक उन हिमालय की घाटियों में उसकी दर्दभरी आवाज गूंजती है जुहो? ..... जुहो?
दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है ! आजकल ऐसी जालिम सास का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है और आज्ञाकारी बहु का भी,यह कहानी इसलिए बड़ी प्यारी लगी मुझे कि , सिर्फ यह एक मात्र कहानी नहीं प्रतीकात्मक कहानी है ! ससुराल प्रतीक है परतंत्रता, रिश्तों का बंधन ! मायका प्रतीक है स्वतंत्रता का शीतलता शांति का ! सास प्रतीक है नेगेटिव एनर्जी ! नकारात्मक उर्जा अक्सर सकारात्मक उर्जा पर हावी होना चाहती है ! हर मनुष्य के प्राणों में एक प्यास है पूकार है अपने अस्तित्व के खोज क़ी लेकिन हर बार नकारात्मक उर्जा उसे रोक देती है ! बिलकुल उस पहाड़ी लड़की के सास क़ी तरह !
बेहद मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंभिगो गयी यह रचना अन्दर तक...
आभार !
बहुत सुंदर कथा सुमन जी........
जवाब देंहटाएंपढ़ कर कलेजा मुँह को आया..........
अपना पीहर भी याद आया........................
अनु
मार्मिक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंससुराल प्रतीक है परतंत्रता, रिश्तों का बंधन ! मायका प्रतीक है स्वतंत्रता का शीतलता शांति का ! सास प्रतीक है नेगेटिव एनर्जी,,,,,,
जवाब देंहटाएंप्रतीकात्मक कहानी की सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
लोककथाओं और लोकगीतों में छिपी टीस गहरी है। इसी प्रकार की एक कथा पर आधारित लोकगीत यहाँ पढा और सुना जा सकता है:
जवाब देंहटाएंhttp://pittaudio.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html
जीवन की पीड़ा लिए लोककथा
जवाब देंहटाएंइन लोक कथाओं का अपना महत्व है। ये यूँ ही नहीं कही गईं। सदियों के आँसू इकठ्ठे हुए होंगे एक स्थान पर तब जाकर बनी होगी यह कथा।
जवाब देंहटाएं..आभार।
लोककथाए बहुत से अनुभवों के बाद ही अपना रूप लेती हैं ...
जवाब देंहटाएंनार्मिक कथा है ये रिश्तों के तानो बानों के बीच ...
बहुत सुंदर कथा सुमन जी...बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंओह, मार्मिक कहानी।
जवाब देंहटाएंलोक-कथा की यह नई व्याख्या बहुत अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंमायके में स्वतंत्रता का अनुभव भी रिश्तों के बीच ही है। बुद्ध इसीलिए सम्यकता पर ज़ोर देते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने !!
जवाब देंहटाएंहर मनुष्य के प्राणों में एक प्यास है पूकार है अपने अस्तित्व के खोज क़ी लेकिन हर बार नकारात्मक उर्जा उसे रोक देती है
यह लोककथा मार्मिक लगी और दिल को छू गयी .
साभार !!
आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है
http://dineshpareek19.blogspot.in/
सच मुच कहानी मन को छू गयी ...आज भी औरत को अपने वजूद के लिए संघर्ष करना पड़ता है
जवाब देंहटाएंपर ये भी सच है कि तुलनात्मक रूप से परिस्थितियां भुत बदल गई है
जूहो के उत्तर में भोल जाला तो पुरानी कथा का हिस्सा है । प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते की कथा है यह । पर आज भी तो घरों में दफ्तरों में किसी अन्य रूप में हम यही सब देख सकते हैं ।
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