तू आज बता दे फूल मुझे
मैं तुझ-सी खिल पाऊँ कैसे...
तेरे जीवन-पथ पर, बिछे हैं कांटे
फिर भी उर में मुस्कान समेटे
पल-पल हवा के झोंके-से
खुशबू जग में बिखेरता है तू
तुझ जैसी खुशबू बिखराकर
जीवन को महकाऊँ कैसे
में तुझ सी खिल पाऊँ कैसे...
सुबह को खिलता, साँझ मुरझाता
मंदिर मजार पर बलिदान चढ़ाता
कितना सफ़ल है जीवन तेरा
मुझको खलती मेरी नश्वरता
तुझ जैसा बलिदान चढाकर
जीवन को सफ़ल बनाऊँ कैसे...
मै तुझ-सी खिल पाऊँ कैसे...
जीवन को सफ़ल बनाऊँ कैसे...
जवाब देंहटाएंमै तुझ-सी खिल पाऊँ कैसे...
Bahut Sunder Bhav....
फूलों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं .... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंआप तो पहले ही सुमन है!!!!
:-)
सादर.
अनु
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंक्या कहने
जवाब देंहटाएंसच में..
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर शब्द-रूपी फूलों की माला...सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंजीवन के जद्दो-जहद में ऐसे उल्झन भरे प्रश्न सामने आ ही जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसुबह को खिलता, साँझ मुरझाता
जवाब देंहटाएंमंदिर मजार पर बलिदान चढ़ाता
कितना सफल है जीवन तेरा
मुझको खलती मेरी नश्वरता
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।
जीवन सफ़ल बनाऊँ कैसे...
जवाब देंहटाएंमै तुझ सी खिल पाऊँ कैसे...
बड़ी प्यारी पंक्तियाँ लगीं ...
गीत लिखने का दिल होता है ....
भावों और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... फूलों की तरह महकती कविता ...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar aur prabhavshali rachana ...badhai swaeekaren
जवाब देंहटाएंजीवन को सफ़ल बनाऊँ कैसे...
जवाब देंहटाएंमै तुझ-सी खिल पाऊँ कैसे...ati sundar.
बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंhttp://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
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