गुरुवार, 15 मार्च 2012

मरू-उद्यान ....


                                                               हृदय के मरू उद्यान में,
                                                               काव्यों के वृक्ष घने है !
                                                               सतरंगी घटाओं में,
                                                               भावना के पुष्प खिले है !
                                                               अमर बेलों के झुरमुट में,
                                                               कोयल का नित प्रेमगान है !
                                                               शीतल झरनों के संगीत में,
                                                               अनहद का नाद छिपा है !
                                                               पक्षियों की चहचहाहट में,
                                                                जीवन का वीतराग है !
                                                                भूले-भटके पल में,
                                                                चाहे तो विश्राम यहाँ है !

32 टिप्‍पणियां:

  1. पक्षियों की चहचहाहट में,
    जीवन का वीतराग है !
    भूले-भटके पल में,
    चाहे तो विश्राम यहाँ है !

    बहुत सुंदर रचना,.....

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  2. प्यारी रचना ...
    यह विसंगतियां ही जीवन हैं !

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  3. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  4. हृदय के मरू उद्यान में,
    काव्यों के वृक्ष घने है !
    सतरंगी घटाओं में,
    भावना के पुष्प खिले है !
    ..... सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  5. भावनाओं के पुष्प ही नहीं पूरा गुलदस्ता है....

    बहुत प्यारी रचना ..

    सादर.

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  6. पक्षियों की चहचहाहट में,
    जीवन का वीतराग है !
    भूले-भटके पल में,
    चाहे तो विश्राम यहाँ है !mast kavita hai.

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  7. प्रकृति के अवयवों का सुंदरतम प्रयोग!!

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  8. हृदय के मरू उद्यान में,
    काव्यों के वृक्ष घने है !.....
    जरुरी है...

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  9. बेहतरीन रचना, कला की वीथियों में नैशर्गिक प्रतिमान जीवंत हो उठे हैं .... बधाईयाँ जी /

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  10. भूले-भटके पल में,
    चाहे तो विश्राम यहाँ है
    bahut khoobsurat jagah dhoondhi hai.....

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  11. प्रिय मित्रों,
    बहुत बहुत आभार आप सभी का, प्रवास में हूँ आकर आपके पोस्ट पढूंगी !
    खुश रहे सवस्थ रहे :)

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  12. उम्दा रचना,बधाई आप को

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  13. पक्षियों की चहचहाहट में,
    जीवन का वीतराग है !

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  14. हृदय के मरू उद्यान में,
    काव्यों के वृक्ष घने है !
    सतरंगी घटाओं में,
    भावना के पुष्प खिले है ! मनमोहक रचना

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  15. बहुत सुंदर है यह मरु-उद्यान । चित्र तो बेहद सुंदर ।

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  16. प्रकृति से रूबरू खुबसूरत रचना .
    बहुत सुंदर है.

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  17. विश्राम यहां नहीं,यहीं है। अन्यथा तो दौड़ लग ही रही है बाहर की!

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  18. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आप के ब्लॉग पे आने के बाद असा लग रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर अब मैं नियमित आता रहूँगा
    बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

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  19. बहुत सुन्दर रचना!....उत्तान अभिव्यक्ति!

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  20. प्रकृति में हर तरफ सौंदर्य ही सौंदर्य है।
    एक अच्छी कविता।

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