कहाँ मिलेगी
स्नेह तरु की
सघन छाँव !
भटक-भटक कर
थक गए अब
ये प्राण !
किसने दिया जो
ऐसा श्राप
जीवन हुआ
अभिशाप
कही ममता की
छाँव नहीं
जीना कितना
दुश्वार हुआ !
उगने चाहिए थे
गुलाब
पेड़ बबुल का
उग रहा !
आओं प्रिय ...
जंगल चले
पेड़-पौधों की
छाँव तले !
फूलों संग बैठ
तितलियों से
गुफ्तगू कर ले !
प्यार के कुछ
मधुर गीत गायें
आओं ....
उस मस्ती के
पल में
एक पल तो
जी ले !
बिल्कुल सच,
जवाब देंहटाएंउस मस्ती के पल में एक पल तो जी ले...
सुंदर भाव
भावपूर्ण रचना .. अब जंगल में ही मंगल दिखाई दे रहा है
जवाब देंहटाएंप्रकृति की गोद में सबसे अधिक सुकून मिलता है।
जवाब देंहटाएंसुरभित सुमन ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
प्रकृति से बढ़कर सुकूनदायी क्या है..... ? सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवो जो विशालकाय बबूल है,हमने ही किया था उसका बीजारोपण। हां-हां, प्रेम और समर्पण की छांव तले ही मिलेगा तितलियों-सा वात्सल्य,निर्झर से उठता गीत,ज़िंदगी-बोध की मस्ती और निर्विचार के पल!
जवाब देंहटाएंi love your blog, i have it in my rss reader and always like new things coming up from it.
जवाब देंहटाएंFrom everything is canvas
मानव के लिए सबसे अनुकूल प्रकृति की गोद ही तो है ....
जवाब देंहटाएंउस मस्ती के पल में एक पल तो जी ले..!!!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर रचना,...
.
जवाब देंहटाएंप्रकृति की गोद में जो सुख है , और कहां ?
सुंदर भाव ! सुंदर रचना !
साधुवाद !
उगने चाहिए थे गुलाब पेंड बबूल का उग रहा .
जवाब देंहटाएंक्या करें हम बो भी तो बबूल ही रहे हैं
आइयेगा मेरे ब्लॉग पे भी