रविवार, 9 अक्टूबर 2011

मुहब्बत की चाँदनी खिली है ..........



शरद चाँदनी खिली है 
अब छोड़ो भी बहाना 
जैसे भी हो 
आओं छतपर 
रात है नशीली चाँदनी 
नशीला आज मन भी 
बात है कुछ खास 
तनिक बैठो पास 
कुछ कह लेने दो 
कुछ सुन लेने दो 
धडकनों को 
आपस की बात 
आओं 
चाँदनी ओढ़े 
बिछाये चाँदनी
हम- तुम 
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर 
मुहब्बत की चाँदनी
खिली है !

13 टिप्‍पणियां:

  1. चांदनी में खेलती हुई रचना बधाई .......

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  2. प्रेम के गीतों पर तो ब्लॉग जगत में जैसे ग्रहण लग गया है। आपने ध्यान दिलाया कि प्रकृति हम सबको कुछ संदेश दे रही होती है।

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  3. वाह! बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति....
    बधाई और शुभकामनायें.

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  4. प्रेम बिखेरती चाँदनी ...सुंदर रचना

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  5. प्यारा आवाहन .....
    शुभकामनायें आपको !

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  6. चांदनी में खेलती सुंदर रचना....

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  7. आओं
    चाँदनी ओढ़े
    बिछाये चाँदनी
    हम- तुम
    ati sundar.

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  8. प्रकृति के बिम्बों के माध्यम से कही गई मन की बातें बहुत अच्छी लगी।

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  9. चाँदनी ओढ़े
    बिछाये चाँदनी
    हम- तुम
    sundar chandmayee rachna..

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  10. शरद चाँदनी और प्रेम का तो साथ सदियों से है ... इसी प्रेम को अभिव्यक्त करती लाजवाब रचना ...

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