मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

"कैफे दि हैवन"

रावण अपने ही वध क़ी दशहरे पर चल रही तैयारियों को देखता हुआ, शहर में चल रहे हंगामे को देख कर अचंभित-सा होता हुआ टहलते हुए एक कैफे में दाखिल हुआ ! कैफे का नाम था "कैफे दि हैवन" !  सच में स्वर्ग जैसी सारी सुविधाएँ उसमे उपलब्ध थी! कॉफ़ी से लेकर सोमपान तक! रावण ने वेटर को बुलाया और मीनू लेकर आने को कहा ! उसने मीनू पर एक नजर डाली ! गरम-गरम कॉफ़ी पीने का मन हुआ ! उसने देखा कि ५० रूपये एक कॉफ़ी के लिये ! वेटर को कॉफ़ी लाने का आर्डर दिया! कॉफ़ी पीकर रावण का मन बड़ा प्रसन्न हुआ ! रावण ने वेटर को बिल लाने को कहा ! बिल आया ५०० रूपये का ! रावण एकदम क्रोधित हुआ और वेटर से कहा .."पागल तो नहीं हो तुम ? मीनू में साफ-साफ लिख़ा हुआ है ५० रूपये और तुम बिल लाये हो ५०० रूपये का" ! रावण का विकराल रूप देख कर वेटर थर-थर कांपने लगा ! उसने डरते-डरते कहा शांत रहिये मै अपने मैनेजर को बुलाकर लाता हूँ ! उतने में मैनेजर भी शोर सुनकर दौड़ता हुआ आया ! और रावण से क्रोध  का कारण जानकर कहा- "श्रीमान आप ठीक कहते है कॉफ़ी ५० रूपये ही है, लेकिन जरा गौर से ध्यान से मेनू पढ़िए ! ५० रूपये लिख़ा है मीनू में पर हेड ! और आपके तो दस सिर है इसलिए ५०० रूपये का बिल आया है !" मैनेजर ने बड़ी शांति से जवाब दिया ! और रावण ने अपने दसो सिर पिट लिये !
    
         पाठक सोच रहे होंगे राम द्वारा रावण का वध तो कब का हो चूका है ! फिर रावण कैफे दि हैवन कैसे पहुँच सकता है ? कैसे कॉफ़ी पी सकता है ?
खैर यह तो एक मजाक था पर, जिस प्रकारसे हमारे देश में भ्रष्टाचारी रावण आम जनता के हक्क को छिनकर देश को लुट रहे है ! और हम ऐसे रावणों को छोड़कर लंकापति रावण के कागज के पुतले को कब तक जलांयेंगे ?  दशहरे पर हमारा इस प्रकारसे  हर साल रावण को जलाना ही साबित करता है कि रावण जला नहीं है ! जलकर भी अमर हुआ है ! आखिर है तो मायावी..........मजा तो तब है जब ऐसे भ्रष्टाचारी रावण जलेंगे.!

11 टिप्‍पणियां:

  1. रावण जी ने दस कॉफी ऑर्डर की थी क्या । हा हा हा ।
    रावण हमारे समाज में ही व्याप्त है । हम में से हरेक के अंदर राम के साथ रावण भी बसते हैं उन्हे खत्म करना होगा ।

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  2. रावण जी ने दस कॉफी ऑर्डर की थी क्या । हा हा हा ।
    रावण हमारे समाज में ही व्याप्त है । हम में से हरेक के अंदर राम के साथ रावण भी बसते हैं उन्हे खत्म करना होगा ।

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  3. wastav me मजा तो तब है जब ऐसे भ्रष्टाचारी रावण जलेंगे.!

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  4. आपने बहुत सही बात कही है.. हर आदमी में गुणों और अवगुणों का समन्वय होता है !

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  5. एक चिंगारी भड़की तो है। ज़रूरत है इसकी लौ जलाए रखने की। शायद कुछ बदलाव देखने को मिले।

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  6. सटीक और सार्थक आलेख ...सुन्दर...

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  7. एक से पेट नहीं भरता, दस-दस मुख की ज़रूरतों (लिप्सा) को लिए कई रावण हमारे इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।

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  8. सच है,
    हम सब रावणों के बीच में हैं, जिनसे मुक्ति आसान नहीं है।

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  9. बात तो ठीक है कि ऐसे रावणों से छुटकारा मिले तब ही सच्ची विजयादशमी होगी.

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