सवेरे सवेरे
मीठे सपनों में
मै खोई हुई थी
इस कदर नींद कुछ
गहरा गई थी
क़ि झटके से टूट गई
ये किसने दी आवाज मुझको
सवेरे सवेरे !
उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिये
हाथ में
किसकी अगवानी में
हवायें मीठी तान सुनायें
पंछी गीत मधुर गायें
दूर-दूर तक राह में,
कौन बिछा गया
मखमली चादर हरी
सवेरे सवेरे !
कहो किसके स्वागत में
पलक-पावडे बिछाये
इस किनारे पेड़
उस किनारे पेड़
और बीच पथ पर
लाल पीली कलियाँ
किसने बिछाये है फूल
सवेरे सवेरे !
मीठे सपनों में
मै खोई हुई थी
इस कदर नींद कुछ
गहरा गई थी
क़ि झटके से टूट गई
ये किसने दी आवाज मुझको
सवेरे सवेरे !
उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिये
हाथ में
किसकी अगवानी में
हवायें मीठी तान सुनायें
पंछी गीत मधुर गायें
दूर-दूर तक राह में,
कौन बिछा गया
मखमली चादर हरी
सवेरे सवेरे !
कहो किसके स्वागत में
पलक-पावडे बिछाये
इस किनारे पेड़
उस किनारे पेड़
और बीच पथ पर
लाल पीली कलियाँ
किसने बिछाये है फूल
सवेरे सवेरे !
सुन्दर बिम्ब! ये सुबह सुहानी हो!
जवाब देंहटाएंवाह ...सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रकृति में ही मनुष्य का आह्लाद है।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआभार
सुमन जी इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
'किसने बिछाए फूल सबेरे सबेरे '
जवाब देंहटाएं|बहुत खूब लिखा है |बधाई |
आशा
सुमन जी.. बहुत सुंदर लिखा है |बधाई |
जवाब देंहटाएंसुमन जी नमस्कार्। सुन्दर भावों की प्रस्तुति आपकी रचना में ।
जवाब देंहटाएंसुबह-सुबह तो प्रकृति ही हमारे स्वागत में रश्मि-हार लेकर खड़ी हो जाती है, हम ही हैं कि उसका भरपूर उपयोग नहीं करते।
जवाब देंहटाएंप्रभात का मंज़र उतार दिया आँखों के सामने ... बहुत लाजवाब ...
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