बुधवार, 14 सितंबर 2011

हमारे दिमाग में कौन कचरा डाल रहा है?

कल ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम ने गणेश विसर्जन के बाद चलाये गए विशेष अभियान में १,३०० मेट्रिक टन अतिरिक्त कचरा नगर की सड़कों पर से उठाया है! कचरा भी बड़ा अजीब होता है! है ना? जितना साफ़ सफाई करो उतनाही बढ़ता जाता है! इधर ब्लॉगिंग की वजह से, मेरा भी आजकल घर की साफ-सफाई पर विशेष दुर्लक्ष हो रहा है! सच है किसी ने कहा ब्लॉग एक नशा है और नशा कितना भी अच्छा क्यों न हो बुरा होता है! घर पर मैंने भी कल से सफाई अभियान शुरू किया है! किन्तु कचरा है की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है! पर साफ-सफाई की दौरान एक बात जरुर मेरी समझ में आ गई है कि, हमारे विचार भी इस कचरे जैसे ही है! जितना उलीच कर ब्लॉग पर डाल दो उतने ही फिरसे पैदा होते जाते है! इनके प्रोडक्शन में कोई कमी नहीं आती! इस कचरे के भी कई किस्मे है! घर-परिवार वालों ने डाला हुआ कचरा, समाज ने डाला हुआ कचरा, पुस्तकों ने डाला हुवा कचरा! फ़िलहाल इतना बस है! हम बचपन में नासमझ थे इसका महत्व समझ नहीं पायें! अब तो हम बच्चे नहीं रहे! बचकानी हरकतों से बाज कब आयेंगे हम? क्यों इस कचरे को इतना महत्व देते है? मेरी समझ में तो आजतक यह बात नहीं आयीं है! इसको इतना सम्भाल कर रखते है जैसे की हीरे-जवाहरात हो, इतने कीमती की इसके खिलाफ एक आलोचना भी हमें तोड़कर रख देती है! इसी कचरे की खातिर बड़े-बड़े षड्यंत्र, कूटनीति तक चलती है! शब्दों की तलवारे नीकल आती है! महाभारत जैसी लड़ाई देखने को मिलती है! जिनको हम अपने बहुत दिल के करीबी मित्र समझते है कभी-कभी ग़लतफ़हमीयो की वजह से, उनको भी खो बैठते है! कई लोगों के दिल टूट जाते है और लिखने से कुट्टी तक कर लेते है लोग! फिर भी ब्लोगिंग में ऐसा कुछ खास है जो हमें यहाँ बाँध कर रखता है! सिगमंड फ्रायड ने कहा है की मनुष्य बिना झूठ के जी नहीं सकता! कही यही तो वह झूठ नहीं है? जिससे हम खुद को भरा पूरा समझते है और दुसरोंको कुछ भी नहीं! सफाई अभियान के दौरान उपजा मेरे इस कचरा चिंतन पर आप भी जरा सोचिये! तब तक, मै अपना बाकी सफाई अभियान ख़त्म करके आती हूँ!


 



5 टिप्‍पणियां:

  1. 1. किसी ने कहा ब्लॉग एक नशा है और नशा कितना भी अच्छा क्यों न हो बुरा होता है!

    2. हमारे विचार भी इस कचरे जैसे ही है! जितना उलीच कर ब्लॉग पर डाल दो उतने ही फिरसे पैदा होते जाते है!

    क्या बात है, पूरी तरह सहमत। ब्लाग पर जब से आया हूं, हर काम मे देरी हो रही है। कैसे इसे नियंत्रित करुं, जरूर इलाज बताएं।

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  2. जो कुछ हमारे पास है वही आसपास के लोगों को दिखायेंगे ! समाज के प्रति गैर जिम्मेवारी की भावना, अपने ही परिवार का कितना नुकसान कर रही है , इसे समझाने का समय ही नहीं है ! और जब समय होगा तब असीमित नुकसान हो चूका होगा !
    बीमारी के असाध्य होने से पहले ही इलाज़ कर लेना चाहिए !
    शुभकामनायें !

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  3. आपका कचरा -चिंतन एकदम सही और अर्थपूर्ण लग रहा है ....

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  4. हममें से अधिकतर का दिमाग प्रायः कचरा ही है। भीतर और बाहर- दोनों जगह का यह कचरापन दोनों जगत के सौंदर्य को खाए जा रहा है।

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