किसी की प्रशंसा में
फूल खिलते नहीं है
पंछी गीत गाते नहीं
तितलियाँ पंख अपने
रंगती नहीं है !
किसी की समीक्षा
के लिये नदी
रूकती नहीं है !
पहाड़ों, जंगलों को
काटती रंभाती नदी
अनवरत बहती
चली जाती है
सागर है उसका
एक लक्ष !
हवा रूकती नहीं
नदी रूकती नहीं
तो फिर, तुम
किसकी प्रतीक्षा में
रुके हुये हो
ओ मेरे मन
तुम भी चल दो
तोड़कर प्रीति-बंध !
फूल खिलते नहीं है
पंछी गीत गाते नहीं
तितलियाँ पंख अपने
रंगती नहीं है !
किसी की समीक्षा
के लिये नदी
रूकती नहीं है !
पहाड़ों, जंगलों को
काटती रंभाती नदी
अनवरत बहती
चली जाती है
सागर है उसका
एक लक्ष !
हवा रूकती नहीं
नदी रूकती नहीं
तो फिर, तुम
किसकी प्रतीक्षा में
रुके हुये हो
ओ मेरे मन
तुम भी चल दो
तोड़कर प्रीति-बंध !
सही है ....जिंदगी भी तो चलती ही जाती है
जवाब देंहटाएंलेकिन प्यार की यात्रा चलती रहने चाहिए
जवाब देंहटाएंओ मेरे मन
जवाब देंहटाएंतुम भी चल दो
तोड़कर प्रीति-बंध !
गहन .... मन की गति सच में कई बन्धनों में जकड़ी होती है
कुछ तय नहीं कर पा रहा हूं क्या कहूं।
जवाब देंहटाएं्सुमन जी नमस्कार भावपूर्ण प्रस्तुति। जयहिन्द्।
जवाब देंहटाएंक्या कहने, बहुत सुंदर
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