सुबह-सवेरे
मॉर्निंग वाक् के
बाद !
जब हम घर
लौटेंगे तब
गर्म चाय के
प्याले में,
दूध और शक्कर के
साथ.
क्यों न हम
उसमे घोले
दो चम्मच
प्यार की मस्ती !
और भूल जाए
उन मस्तीभरी
चुस्कियों में,
भूत-भविष्य !
शुद्ध वर्तमान में
जो भी है
जैसा भी है
स्वीकार कर ले
आज का यथार्थ !
मॉर्निंग वाक् के
बाद !
जब हम घर
लौटेंगे तब
गर्म चाय के
प्याले में,
दूध और शक्कर के
साथ.
क्यों न हम
उसमे घोले
दो चम्मच
प्यार की मस्ती !
और भूल जाए
उन मस्तीभरी
चुस्कियों में,
भूत-भविष्य !
शुद्ध वर्तमान में
जो भी है
जैसा भी है
स्वीकार कर ले
आज का यथार्थ !
जो भी है
जवाब देंहटाएंजैसा भी है
स्वीकार कर ले
आज का यथार्थ
yahi to kathin hai suman ji,
aapki kalpana bahut testy hai kintu aahvan bahut kadwa.yathrth sweekarna to kadwe karele jaisa hi hoga n.
sundar abhivyakti.badhai.
और विकल्प ही क्या है :-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
यदि मन से ये स्वीकार कर लें तो दुःख कुछ कम हो जाएँ
जवाब देंहटाएंभूल जाए
जवाब देंहटाएंउन मस्तीभरी
चुस्कियों में,
भूत-भविष्य !
शुद्ध वर्तमान में
जो भी है
जैसा भी है
स्वीकार कर ले
आज का यथार्थ !
बिलकुल सही कहा आपने, आपकी बातों से सहमत ! किन्तु आस पास की घटनाओं से आँख तो नहीं मुंदा जा सकता ! अन्याय को स्वीकार तो नहीं किया जा सकता !!
बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...मन की वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्वीकार कर ले
जवाब देंहटाएंआज का यथार्थ !
स्वीकारने के सिवा चारा भी क्या है ? भावों की सुंदर अभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
करना ही चाहिए...... प्रेरणादायी पंक्तियाँ.....
जवाब देंहटाएंकोई बुद्ध पुरुष ही वर्तमान में जीता है। नतीज़ा हम देख ही रहे हैं। हम सबकी खोपड़ी आज एक डस्टबिन से ज्यादा नहीं है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंआज जब सम्पन्नता आ रही है तो इन्सान के पास साड़ी वस्तुएं तो होती हैं, पर प्यार के दो पल साथ बिताने के वक़्त नहीं होता हैं.
यही है आज का यथार्थ .
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क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?
बाबा का अनशन टुटा !
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत बढिया
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