तनाव,डिप्रेशन आज हम अकेले की समस्या नहीं है तनाव आज संपूर्ण विश्व समस्या बनकर उभर रही है ! आज हमारा रिश्ता नाता कहीं दूर तक संसार से तो जुड़ गया है लेकिन हमारे अपने मूल अस्तित्व से छूट गया है ! "ध्यान" से छूटकर धन से जुड़ गया है ! प्रेम से छूटकर नफरत से जुड़ गया है ! शांति से छूटकर तनाव से जुड़ गया है ! जहाँ भी देखो हर मनुष्य हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन कोई न कोई बीमारी का शिकार है ! सारे प्राइवेट अस्पताल सरकारी अस्पताल मरीजों से भरे पड़े है ! आज एक शारीरिक मानसिक संपूर्ण स्वस्थ व्यक्ति खोजना मुश्किल हो गया है ! मनुष्य बाहर से जितना साधन संपन्न दिखाई देता है भीतर से उतना ही दीनहीन दुखी,विक्षुब्ध और चिंतित दिखाई देता है आज ! और प्रत्येक मनुष्य ने यह स्वीकार ही कर लिया है कि सबकी जीवन दशा एक-सी है मै अकेला थोड़ा ही हूँ !
इसी संदर्भ में हमारी हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उल्लेखनीय चार युगों और उनकी विशेषताओं की सुन्दर अलंकारिक बात कुछ इस प्रकार से बताई गई है ! सतयुग अर्थात सत्य का युग जिसके सत्य,तप,शुद्धता और दया जैसे चार स्तंभ थे, जैसे एक मेज की भांति पूर्ण संतुलित युग था ! त्रेतायुग अर्थात त्रेता का अर्थ है तीन,उस युग में एक स्तंभ टूट कर गिर गया संतुलन जरा सा गड़बड़ा गया तो मनुष्य भी दुःखी मर्यादाविहीन होता गया ! फिर आया द्वापर याने की दो पैर, और दो स्तंभ टूट कर गिर गए फिर मनुष्य और भी दुःखी,चिंतित होता गया ! अब हम चौथे युग कलियुग में जिसे हम आधुनिक युग भी कहते है निम्म तल पर आ गए है ! एक पैर पर खड़े है सोचिये कितनी देर खड़े रह सकते है ? और जीवन भीतर से और अधिक दीनहीन होता जा रहा है ! आज जब हमने अपने शरीर,मन,आत्मा से संबंध तोड़कर सारा का सारा जीवन का संतुलन बिगाड़ लिया है तब तनाव कैसे न होगा भला !
सुबह कोई भी अख़बार खोल कर देखिये हिंसा से भरे हुए है ! असमय दरवाजे पर घंटी बजी तो हम चौंक जाते है ! असमय फोन की घंटी बजे तो डर लगता है ! कोई घर आ गया तो डर कोई घर से बाहर गया तो डर, किसी को मन की बात कहने को डर पता नहीं कौन कब इसका गलत फायदा उठा ले सोचकर,ऐसे लगता है जैसे हम सब डर और दहशत के माहोल में जीने को मजबूर हो गए है हमारा निर्दोष,निर्भय जीवन खो गया लगता है !
इसी संदर्भ में हमारी हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उल्लेखनीय चार युगों और उनकी विशेषताओं की सुन्दर अलंकारिक बात कुछ इस प्रकार से बताई गई है ! सतयुग अर्थात सत्य का युग जिसके सत्य,तप,शुद्धता और दया जैसे चार स्तंभ थे, जैसे एक मेज की भांति पूर्ण संतुलित युग था ! त्रेतायुग अर्थात त्रेता का अर्थ है तीन,उस युग में एक स्तंभ टूट कर गिर गया संतुलन जरा सा गड़बड़ा गया तो मनुष्य भी दुःखी मर्यादाविहीन होता गया ! फिर आया द्वापर याने की दो पैर, और दो स्तंभ टूट कर गिर गए फिर मनुष्य और भी दुःखी,चिंतित होता गया ! अब हम चौथे युग कलियुग में जिसे हम आधुनिक युग भी कहते है निम्म तल पर आ गए है ! एक पैर पर खड़े है सोचिये कितनी देर खड़े रह सकते है ? और जीवन भीतर से और अधिक दीनहीन होता जा रहा है ! आज जब हमने अपने शरीर,मन,आत्मा से संबंध तोड़कर सारा का सारा जीवन का संतुलन बिगाड़ लिया है तब तनाव कैसे न होगा भला !
सुबह कोई भी अख़बार खोल कर देखिये हिंसा से भरे हुए है ! असमय दरवाजे पर घंटी बजी तो हम चौंक जाते है ! असमय फोन की घंटी बजे तो डर लगता है ! कोई घर आ गया तो डर कोई घर से बाहर गया तो डर, किसी को मन की बात कहने को डर पता नहीं कौन कब इसका गलत फायदा उठा ले सोचकर,ऐसे लगता है जैसे हम सब डर और दहशत के माहोल में जीने को मजबूर हो गए है हमारा निर्दोष,निर्भय जीवन खो गया लगता है !
जैसे जैसे भौतिकता को बढ़ावा मिला है वैसे वैसे पैसे का बोलबाल बढ़ा है और उसके साथ साथ ध्यान में मन कम हुआ है ... इसलिए ही तनाव और मानसिक बीमारियों का उदय तेज़ी के साथ हुआ है ... मन मिएँ दर बैठ गया अहि पर फिर भी ध्यान नहीं लगाता इंसान हर समस्या का हल पैसे मिएँ ही खोजने लगा है ...सहमत हूँ आपकी बात से ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक....आधुनिक जीवन शैली तनावों को बढ़ाती है. अध्ययन, व्यवसाय व नौकरी की प्रतिर्स्पद्धा, अन्य से आगे बढ़ने की इच्छा व सफलता की भूख, असफलता का भय तनावों को बढ़ा देता है.
जवाब देंहटाएंवाकई , हर ओर असहज सा वातावरण बन गया है । यह सुकून छीनने वाला भाव भीतर भी है और बाहर भी
जवाब देंहटाएंमनुष्य प्रकृति से दूर जाता जा रहा है. जो सुकून प्रकृति की गोद में मिलता है वो घर में ऐ.सी. लगाकर और फूलों का गुलदस्ता सजाकर और लतिकाएँ डालकर कहाँ मिलने वाला है. पारवारिक जीवन विध्वंश के कगार पर है. शहर के लोग है. गाँव नहीं जाना चाहते है...गर्मी लगती है और त्वचा का रंग काला हो जाता है. परिवार में रहकर जो बंदिशें स्वतः आती है उसे स्वीकार करने की भावना किसी को मंजूर नहीं..सब पाषाणी ताना-बाना लगता है. फिर क्लेश क्यों ना हो...बहुत ही सुन्दर चिंतन.
जवाब देंहटाएंआदमी आदमी से कम य्ंत्रों से ज्यादा जुड गया है। उसे लगता है हर समस्या का हल पैसा है पर ऐसा है नही। बात चीत होती नही किससे कहें मन की बात वाली हालत है।
जवाब देंहटाएंतनाव एवं मानसिक परेशानी का मूल कारण ही हमारी जीवन के प्रति नासमझी भरा रवैया है ।आपने बहुत अच्छे विचारों से इसी बात को समझाने का प्रयास किया है ।
जवाब देंहटाएंआज के दौर तनाव हमारी जिंदगी एक हिस्सा बन चुका है। लाख जतन करने के बाद भी हम तनाव से घिर ही जाते हैं। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है यह तनाव अशिक्षित/अविकसित देशों में अधिक है, जहाँ तनाव के कारण भरे पड़े हैं ! यूरोपीय देशों में मैंने ऐसी विकरालता महसूस नहीं की ! शिक्षा में सुधार और आसानी से उपलब्ध होने पर शायद इस पर रोक लगे !
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