दुनिया से बेखबर
समाज में व्याप्त
उपेक्षित,निंदित,
भूखी,नंगी गरीबी
किसी छायाकार की
चित्र प्रदर्शनी में
प्रशंसकों के बीच
मास्टर पीस
कहलाती है … !
समाज में व्याप्त
उपेक्षित,निंदित,
भूखी,नंगी गरीबी
किसी छायाकार की
चित्र प्रदर्शनी में
प्रशंसकों के बीच
मास्टर पीस
कहलाती है … !
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (21.08.2015) को "बेटियां होती हैं अनमोल"(चर्चा अंक-2074) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंसच तो यही है....
जवाब देंहटाएंसच कहा है .... और वो मास्टरपीस चित्रकार की गरीबी ही मिटा पाता है उस गरीब की नहीं ...
जवाब देंहटाएंसच कहा, यहाँ किसी की बेबसी का तमाशा ख़ूब होता है.
जवाब देंहटाएंदुखद सत्य :(
जवाब देंहटाएंयही हकीकत है हमारे समाज की , जिसमें गरीब को कोई स्थान नहीं !
जवाब देंहटाएंहाँ....आखिर रोज़गार है पहले...शेष संवेदनाएं बाद की बात है. यही एक स्वीकृत सूत्र बन चुका है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता से सत्यजीत रे की फिल्म पथेर पांचाली याद आ गई। ऱे साहब को तो बडा नाम मिला जो उनकी मेहनत का था, पर ऐसी कितनी पांचालियां आज भी पथ मेंदरदर की ठोकरे खा रहीं हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता से सत्यजीत रे की फिल्म पथेर पांचाली याद आ गई। ऱे साहब को तो बडा नाम मिला जो उनकी मेहनत का था, पर ऐसी कितनी पांचालियां आज भी पथ मेंदरदर की ठोकरे खा रहीं हैं।
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