प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति पांच हजार के हिसाब से दो दिवसीय आध्यत्मिक शिविर था हमारे शहर में, पहले दिवसीय प्रवचन के अंत में स्वामी जी ने अपनी लिखी हुयी किताबों के ढेर की ओर इशारा करते हुए भक्तों से कहा … "कल के कोर्स के लिए मेरी लिखी दो किताबे खरीदनी जरुरी है प्रति किताब की कीमत मात्र २५०/- रुपये है ! इसके आलावा किसी रिश्तेदारों, मित्रों को उपहार स्वरूप भी किताबे खरीदना चाहो तो खरीद
सकते हो" ! स्वामीजी की बात का असली मकसद जानकर कई सारे भक्त नाराज हो गए उनमे हमारे एक प्यारे मित्र भी शामिल थे जो यहाँ के High Court में अपनी प्रैक्टिस करते है कुछ ज्यादा ही नाराज हो गए परिणामस्वरूप अपने माल (किताब) की डायरेक्ट मार्केटिंग कर रहे स्वामी जी ने सदा के लिए एक अच्छे भक्त (ग्राहक) को खो दिया !
कहने का मतलब इतना ही था की इन आध्यामिक शिविरों का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन को ध्यान संपन्न प्रेम संपन्न बनाकर रूपांतरित करना न होकर केवल अपना व्यापर चलाना मात्र होता है !
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