नमक,मिर्च,मसालों की
नपी तुली मात्रा
जहाँ भोजन को
स्वादिष्ट बनाती है
वहीँ अधिक मात्रा
भोजन के पोषक
तत्वों को नष्ट
कर देती है !
साहित्य में भी
यही सच है !
सुगम साहित्य
आत्मा की भूख है
भूख प्राकृतिक है
मुझे भी लगती है
आप ही की तरह
पढ़ना मै भी चाहती हूँ
लेकिन क्या ?
कुछ ऐसा जो
सुपाच्य, स्वास्थ्यवर्धक
जीवन को रसमय
बना दे कुछ वैसा … !!
सच साहित्य सुरुचिपूर्ण और सुपाच्य होना चाहिए l
जवाब देंहटाएं: रिश्तेदार सारे !
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति है .
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
बहुत ही बढ़िया रचना है ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का स्वागत है .
वाकई .... वही सार्थक भी होगा
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंएक समय था जब साहित्य से जीवन की दिशा निर्धारित होती थी, उसमें समाज परिलक्षित होता था. धीरे-धीरे समाज सड़ने लगा और साहित्य भी स्तरहीन होता चला गया. कुकुर्मुत्ते की तरह उग आये "रचनाकार", थोक के भाव में लिखी जाने लगी कविताएँ. इन रचनाओं में दिखने लगा षड़यंत्र, चाटुकारिता और विष बुझे वाण.
जवाब देंहटाएंमसालेदार रचनाओं को परोसते परोसते यह भूल गये कि ये मसाले सिर्फ हाज़मा ही नहीं बिगाड़ते, बल्कि स्वास्थ्य भी बिगाड़ते हैं. भोजन का रसमय होना उतना आवश्यक नहीं, किंतु साहित्य में जीवन के रस होना अनिवार्य है.
एक बार फिर एक सार्थक रचना, भगिनी!
इश्क़,बेरुखी,रोने धोने , से भी कुछ आगे आयें
जवाब देंहटाएंकर न पायीं बातें ग़ज़लें , हंसने और हंसाने की !
बढ़िया
जवाब देंहटाएंअच्छा साहित्य और स्वस्थ साहित्य समाज और इंसान की भूख मिटाता है ... पर कई बात कुछ अलग सा लिखा सोचने वाले/कवी की उड़ान को भी दिखाता है ...
जवाब देंहटाएंरचना के माध्यम से सार्थक बात कह दी आपने ...
कुछ ऐसा जो
जवाब देंहटाएंसुपाच्य, स्वास्थ्यवर्धक
जीवन को रसमय
बना दे कुछ वैसा … !!
......सार्थक बात कह दी आपने
जवाब देंहटाएंसुपाच्य, स्वास्थ्यवर्धक
जीवन को रसमय बनाने वाला साहित्य
सही कहासुमन जी।
साहि्त्य मन -मस्तिष्क की खुराक है - स्वस्थ मानसिकता के निर्माण और पोषण का कारक है.आज यही तो हो रहा है सुमन जी,सिनेमा ,टीवी आदि साहित्य के दृष्य रूप हैं .इन सब का रूप जैसा विकृत है वैसी ही समाज की मनोवृत्ति है .मुश्किल तो यह है कि अगली पीढ़ी को परिवार से अच्छे संस्कार मिलें इस की भी अधिकांश लोगों चिंंता नहीं .
जवाब देंहटाएंसत्या वचन! फास्ट फूड के जमाने में भी सात्विक और पोषक भोजन की खोज स्वाभाविक है।
जवाब देंहटाएंहम भी कुछ ऐसे ही हैं..जहाँ मिल जाए...जो मिल जाए :)
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