बुधवार, 7 जनवरी 2015

सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी !

ठक-ठक ठक-ठक सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! कौन है ? भीतर से देवदूत की आवाज आयी ! जी, दरवाजा खोलिए बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! देवदूत ने जरा सी खिड़की खोलकर पूछा क्या चाहते हो ??   जी, मै भीतर आना चाहता हूँ बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! पहले यह बताओ कि शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो ? देवदूत ने प्रश्न किया ! जी, शादीशुदा हूँ उस आदमी ने विनम्रता से कहा ! ठीक है नरक तो तुमने भोग ही लिया है अब स्वर्ग के सुख भोगने आ जाओ स्वर्ग में स्वागत है देवदूत ने दरवाजा खोलते हुए कहा ! अभी दरवाजा बंद किया ही था की फिर से दस्तक हुई ठक-ठक ठक-ठक ! देवदूत ने फिर से जरा सी खिड़की खोली और खिड़की से झांककर फिर से वही प्रश्न दोहराया कौन हो और क्या चाहते हो ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा जो अभी-अभी भीतर गया है मै उसीका मित्र हूँ हम दोनों साथ-साथ मरे थे मैंने आत्महत्या कर ली वह मारा गया था उसकी चाल हमेशा मुझसे जरा तेज थी सो, वह जरा तेजी से आ गया मै जरा लेट हो गया इसलिए मुझे आने में जरा सी देर हो गयी अब तो दरवाजा खोलिए ! देवदूत ने फिर से पहले व्यक्ति से किया हुआ प्रश्न दोहराया शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा एक नहीं तीन बार की है चौथी के चक्कर में सब मामला गड़बड़ हो गया उसने कुछ पछतावे भरे दुखी स्वर में कहा  … !
पहली बार शादी एक ही भूल है दूसरी बार शादी अनुभव की कमी है तीसरी बार शादी गले का फंदा ! माफ़ करना यह स्वर्ग है कोई धरती का पागलखाना नहीं है एक बार की हुई भूल माफ़ी लायक है दूसरी बार की हुई भूल अनुभव की कमी है लेकिन बार-बार की हुई भूल भूल नहीं पागलपन है देवदूत ने यह कहते हुए दरवाजा जोरसे बंद करते हुए कहा    …!!

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