रविवार, 10 अगस्त 2014

सिकंदर और कौये की आपबीती …

बात तब की है जब सिकंदर भारत की यात्रा पर आया हुआ था ! सिकंदर ने सुना था कि, भारत के किसी मरुस्थल में ऐसा झरना बहता है जो भी उस झरने का पानी पीता है वह अमर हो जाता है !
उस झरने का पता लगाने के लिए उसने अपने सिपाहियों को चारोंओर दौड़ा दिया  ! आखिर एक दिन उस झरने का पता मिल गया ! सिकंदर की ख़ुशी देखने लायक थी, उसने उस झरने के चारो तरफ यह सोचकर सिपाहियों का पहरा लगा दिया कि, कोई दूसरा उस झरने तक नहीं पहुँच सके इसलिए ! एक छोटी सी गुफा में वो झरना बह रहा था वह अकेला उस झरने के पास पहुंच कर देखा कि, बड़ा ही साफ स्वच्छ स्फटिक मणि जैसा झरना बह रहा है ! सिकंदर ने अब तक ऐसा साफ स्वच्छ पानी कहीं नहीं देखा था ! सामने अमृत और अमर होने की प्यास शायद किसी के मन को भी डावांडोल कर सकती है ! सो उसने भी जल्दी से अंजुली भर ली और उस पानी को पीने जा ही रहा था कि, एक आवाज उसके कानों में गूंजी "सिकंदर रुक जा " ! उसने अपने चारो और देखा और घबराते हुए पूछा ये कौन है इस गुफा में ?? इतने में एक कौये की आवाज उस गुफा में गूंजी    … "यह मै हूँ सिकंदर इधर मेरी तरफ देख, और मेरी आपबीती सुनने के बाद ही तुम इस झरने का पानी पीना " ! पानी से भरी अंजुली छूट गयी हाथ से,कौये की बात सुनकर घबरा गया  ! उसने कहा कौये से कहो क्या कहना चाहते हो ? उस कौये ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि तू जिस प्रकार आदमियों में सिकंदर है मै अपनी बिरादरी में सिकंदर हूँ मैंने भी इस झरने के बारे में खूब सूना था बहुत खोज की थी अंत में इसे खोजकर जी भर कर पानी पी लिया इस बात को कई सादिया बीत गयी लेकिन अब मरना चाहता हूँ ! रोज सुबह से शाम कांव-कांव, कांव-कांव करते थक गया हूँ लेकिन मरता नहीं हूँ कई बार जहर पीया खुद को फांसी पर चढ़ाया, पहाड़ से कूद पड़ा, आग में झुलसना चाहा लेकिन कोई असर नहीं होता कितना ही कोशिश क्यों न करूँ आखिर जिंदा बच जाता हूँ ! अब जिंदगी एक बोझ सी लगने लगी है मै अब मरना चाहता हूँ ! अगर तुम्हारे पास इस अमृत को बेअसर करने को कोई एंटीडोट हो तो मुझे बताओ ? और मेरी इस आपबीती को सुनकर सोच समझकर यह फैसला करो की इस झरने का पानी पीना चाहते हो अथवा नहीं पीना चाहते हो ! अगर जल्दबाजी में पानी पीयोगे तो मेरी तरह पछताओगे फिर कभी नहीं मर पाओगे सोच लेना ! कौये की इस कहानी को सुनकर सिकंदर पल भर सोचा और ज्यों वहां से भागा फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कहीं मन प्रलोभन में पड़कर उस झरने का पानी पी न ले इसलिए !

कहानी किसी और सन्दर्भ में कही गयी होगी लेकिन मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा मनुष्य वाणी में अपनी आपबीती सुनाने वाला यह कौआ और कोई नहीं एक ब्लॉगर की आत्मा है जिसने इस मरुस्थल में ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी पी लिया है और अमर हो गया है ! अब कितना ही पछताये मरने का कोई उपाय नहीं है ! रात दिन कांव-कांव करना अब उसकी नियति बन गयी है ! प्रशंसा के चंद शब्द उसे रोज जीने को मजबूर कर देते है :)  !  भले ही कितना भी थक ले अब मरने का कोई उपाय नहीं है ! यह कहानी चेतावनी स्वरूप है उस सिकंदर के लिए जिसने अभी तक इस ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी नहीं पीया है लेकिन पीना चाहता है ! सावधान ! यहाँ जो भी एक बार आता है इस झरने का पानी पीता है अमर हो जाता है ! फिर कितना भी सर पटक ले, घायल हो ले यहाँ अब मरने कोई उपाय नहीं है सोच ले ! 
कांव-कांव-कांव कांव :)

बुधवार, 6 अगस्त 2014

सृजन की ये कैसी मीठी,मधुर वेदना …

क्या चाह है वो 
नभ बाहों में 
भर लेने की,
या की 
खोज है वो 
खुद को 
पा लेने की,
या फिर 
तृष्णा है वो 
बूंद-बूंद कर 
पूरा सागर ही 
पी लेने की,
आहा !
सृजन की ये 
कैसी मीठी, मधुर 
वेदना है जो 
जन्म देती है 
हर बार एक 
नयी रचना को    … !!